यह भी मनुष्यों से जानवरों में और जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारी है। मनुष्यों में इस रोग को ‘सोने-वाली’ बीमारी कहते हैं।
मनुष्य इस बीमारी में अधिक सोता है। यह रोग ‘सी-सी’ नामक मक्खी से फैलता है। यह मक्खी खाल पर बैठकर रक्त पर परजीवियों को छोड़ देती है। यह परजीवी खाल से ‘लिम्फनोड’ में होते हुए रक्त में चले जाते हैं। जहां ये रक्त कोशिकाओं पर हमला करते हैं। इससे पशु को कभी-कभी रूक-रूक कर बुखार आता है तथा शरीर के खून में कमी हो जाती है। यानि जानवर ‘एनीमिया’ का शिकार हो जाता है। पशु का वजन कम होता जाता है। इसकी जांच ताजे खून में परजीवी देखकर की जा सकती है। इसमें आर.टी.यू इंजैक्शन इंटर वैट कम्पनी का लगवाकर आप अपने पशु चिकित्सक की सहायता लें। यह रोग मार्च से सितम्बर तक ज्यादा होता है। इसमें पशु मरता तो नहीं, परन्तु वह दुर्बल होता चला जाता है। ऐसे पशु की तुरन्त जांच करा लेनी चाहिए। यह रोग ‘एंटीबायोटिक’ से ठीक नहीं होता है।
जिन गायों को थिलेरिया तथा ट्रिप्नोमाइसिस होता है। उनका मैस्ट्राइटिस बहुत, कम ठीक होता है। इसलिए खून की जांच होनी आवश्यक है। और मैस्ट्राइटिस की रोक-थाम के लिए कैलीफोनिया मैस्ट्राइटिस टेस्ट कराना आवश्यक है। लेखक के अनुसार याट्रिन की ट्यूब थन में चढाना लाभदायक होता है।