आन्तरिक परजीवियों का उपचार

गाय के आन्तरिक परजीवी गर्मी के मौसम में अधिक पनपते हैं। यह समझ लेना आवश्यक है कि अनावश्यक कीड़ों की दवाई देना पशु के लिए तथा पशु का दूध पीने वालों के लिए हानिकारक हो सकता है।

इसलिए पहले गोबर की जांॅच करा लें, तथा उन्हें कीड़ों की दवाई दें। जो बच्चे एक साल से कम के होते हैं, वह कीड़ों से अधिक प्रभावित होते हैं, जबकि पुराने जानवरों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। बड़े जानवरों में परजीवियों के अण्डे गोबर के साथ बाहर आ जाते हैं, जहांॅ वे लार्वा में बदल जाते हैं। लार्वा चारे की पफसलों पर पफैल जाते हैं। कुछ परजीवियों के अण्डे ‘स्पोर’ में बदल जाते हैं। यह कापफी समय तक विषम परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं। 20 डिग्री से 35 डिग्री का तापक्रम तथा वर्षा का मौसम इनके लिए अधिक उपयुक्त होता है। 40 डिग्री से अधिक गर्मी होने पर तथा सूखा मौसम होने पर यह ज्यादा नहीं पनप पाते हैं। यहांॅ यह बताना आवश्यक है कि जिन पफार्मों में गोबर गैस बनाना उपयुक्त होता है, वहांॅ पर गोबर गैस में अधिक तापक्रम होने पर यह नहीं पनप पाते हैं।

फैनबिनडाजाॅल पेनाकुरः फैनबिनडाजाॅल पेनाकुर नाम की यह दवा आंॅत के कीड़ों तथा फेफड़ों के कीड़ों के लिए काफी अच्छी है। आइवर मैकटीन आइवोमैक नामक यह दवा भी आंॅत के परजीवी एवं फेफडे़ के परजीवी।

लीवामिसाॅलः  लीवामिसाॅल टारमिसाॅल, लीवीसाॅलद्ध यह दवाई भी आंॅत के कीड़ों के लिए कापफी अच्छी है। यह दवा गोली में आती है।

थाइबिंडाराॅल (टीवीरैड): थाइबिंडाराॅल भी आॅंत के कीड़ों के लिए ठीक दवा है। इसके बाद चार दिन तक दूध को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
एलबिंडाराॅल (वाल्वाजीन):  यह आंॅत के गोल तथा फीताकार कीड़ों के लिए एवं पफेपफड़ों के कीड़े व जिगर के कीड़ों के लिए अच्छी है।
यह दवाई कृत्रिम गर्भाधान के 45 दिन तक इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए।