थिलेरिया रोग अकसर संकर नस्ल की गायों में ही होता है। यह देशी नस्ल की गायों में नहीं होता।
इस रोग का जीवाणु खून का परजीवी है। जैसे मनुष्यों में मलेरिया होता है उसी तरह से पशुओं में थिलेरिया होता है। यह रोग ठंडे जलवायु वाले देशों में नहीं होता। यह सिपर्फ गरम जलवायु के देशों में ही होता है। भारत के पंजाबए गुजरातए हरियाणाए उत्तर प्रदेशए बिहारए उड़ीसा के मैदानी इलाकों में यह ज्यादा होता है। यह पर्वतीय इलाकों में नहीं होता। उत्तराखण्ड में संकर नस्ल की गायें बाहर से ही लाई जाती हैंए इसलिए यह रोग भी उनके साथ ही आ जाता है।
यह दुग्ध उत्पादन के लिए बहुत बड़ा संकट है। यदि समय रहते ठीक उपचार न हो तो 90 प्रतिशत पशुओं की मृत्यु हो जाती है। यह रोग मार्च से सितम्बर तक ही अधिक होता है। ठंड में यह रोग नहीं होता। यह रोग किलनी द्वारा पफैलता है संक्रमित पशु की किलनी यदि दूसरी गायों पर लग जाती हैए तो उनमें भी ये रोग पफैल जाता है। छोटे बच्चों में ये रोग भ्रूण अवस्था से ही आ जाता है। पहला यदि ये रोग एक बार किसी पशु को हो जाता हैए तो ये दोबारा उसे नहीं होता। परन्तु वह रोग के परजीवियों को दूसरे पशुओं में फैला सकता है।
इस रोग के हो जाने पर 105 से 106 डिग्री पफैरानाइड तक तेज बुखार आता है। इसमें पशु कुछ खाता नहीं है और दूध भी कम कर देता है। धीरे.धीरे उसका दूध भी सूख जाता है। आंखए नाकए मुंह से पानी आता है। कभी.कभी पशु को डायरिया भी हो जाता है। पशु इतना दुर्बल हो जाता है कि वह हांपफने तक लगता है। उसके आगे के पैरों की लिम्पफ.ग्लैंड सूज जाती है।
पशु में इस रोग की रोकथाम के लिए बाहरी परजीवियों का उपचार करें। मैदानी इलाकों से गर्मी में पशु न लायें। यदि ले.के आये हैं तो उन्हें अलग रखकर ब्रूपारोकुनैन का टीका लगा दें। थिलेरिया का इंजैक्शन बबेसिया में सहायक नहीं है। सभी इंजैक्शनों को अपने पशु चिकित्सक से लगवाएं।
यह विदेशी नस्ल की गायो के लिए अति हानिकारक रोग है। इससे डेरी फेल होने की कगार पर पहुँच जाती है।
थलैरिया का टीकाकरण
विदेशी नस्ल की गाय थलैरिया से सकरमित्र होकर उपचार न मिलने पर मर जाती है। यदि अगर थलैरिया परजीवी गाय के लिमफेटीक तन्त्र में रहता है तो वह पशु को बीमार तो नही करता परन्तु उसके दुग्ध उत्पादन को कम करता है एवं उसके प्रजनन में भी बंाधा डालता है। ऐसी गाय गर्मी के कारण 25 डिग्री सेटीग्रेट के अधिक तापक्रम पर हाफती है। बच्चो में थलैरिया मां के पेट से ही आ जाता है। तथा गाय के बच्चो की मृत्यु सब प्रकार के उपचार के बाद भी हो जाती है। थलैरिया का परजीवी,थलैरिया ऐनुरटा कहलता है। ओर यह थलैरिया जैसे मनुष्य में मलेरिया होता है वैसे ही विदेशी गाय में थलैरिया होता है। इसे बडी हानि होती है परन्तु अब भारतवास में थलैरिया से बचने के लिए रक्षा रेब टी नाम का टीका उपलब्ध है। यह टीका इडियन रिमोजिन द्वारा उपलब्ध है। यह टीका तरल नाइट्रोजन में रखा जाता है एवं इस टीके की 300 खुराक 60,000 हजार रूपये की आती है तथा कम से कम पांच पशुओ को एक बार में टीका करण किया जाता है। जिसकी किमत खरीब 200 रू0 प्रति पशु पडती है। इसका टीका दो महीने से बडे बच्चे को लगता है तथा यदि अगर आपके पशु को बह्यय परजीवी नही लगते है तो यह 3 साल बाद फिर लगवानी पडती है परन्तु यदि आपकी गाय वाये परजीवी से प्रभावित है तो इसे जीवन प्रयन्त एक बार टीका लगवाने के बाद आवश्यकता नही पडती।
- यह टीका पांच पशुओ के लिए 2 एमएल मे प्राप्त है इसको 13 एमएल डाइलूएन्ट मे मिला कर 3 एमएल प्रति पशु गाले मे खाल के नीचे लगते है
- टीके को तरल नाइट्रोजन से निकलकर कमरे के तापक्रम पर लाया जाता है
- यह टीका 2 महीने के बडे गाये के बच्चो का लगाया जाता है।
- यह टीका ब्याने वाली गायो को नही लगता है।
- इस टीके के लगाने के बाद कोई दूसरा टीका 2 मकिलो0 तक न लगाये।
टीका लगाने की विधि
एमएल टीके की वाईल को तरल नाइटोजन से निकल कर 37 डिग्री सेटीग्रेट तापक्रम पर लाये तथा इस 2 एमएल को 13 एमएल डाइलूएन्ट में मिलाऐ, फिर इस टीके का 3 एमएल खाल के नीचे गर्दन मे लगाये। इसमें गलाफ तथा नई सीरीन्ज का प्रयोग करे वैसे तो इस टीकाकरण से बहुत कम होती है परन्तु कोई रियेक्शन हो तो एवीएल का प्रयोग करे। टीका करण अपने पशु चिकित्सक से करवाये।
चित्र 6.26
छोटी वाईल तरल नाइटोजन में रखी रहती है यह थलैरिया पांच पशुओ का टीका है इसको 35 डिग्री पानी मे रखकर तरल मे बदलने तथा इसको 2 एमएल की नई सीरीन्ज से गलाफ पहनकर बडी वाली वाईल में मिलाये, यह बडी वाली वाइल तरल नाइटोजन में नही रखी जाती । इस बडी वाईल में 13 एमएल डाइलूएन्ट होता है इस प्रकार से 13 एमएल डाइलूएन्ट 2 एमएल टीका मिलकर 15 एमएल हो जाता है। इस 15 एमएल मे से 3-3 एमएल पाँच पशुओ को खाल के नीचे लगवाये।