भेड़ों में प्रजनन तथा कृत्रिम गर्भादान

भेड़ो में प्रजनन

प्रजनन में 17वीं सताब्दी से आजतक काफी प्रगति हुई है, जिसमें अति हिमकृत टैक्नोलाॅजी ने काफी योगदान दिया है। जिसकी वजह से आज हमारे पास सैक्स सीमन है। तथा हम नियन्त्रित प्रजनन कर सकते हैं, भूर्ण प्रत्यारोपण तथा क्लोनिंग जैसी तकनीकों का भी विकास हुआ है। बकरी में भारतवर्ष में कश्मीर में पश्मीना बकरी का सफल प्रयोग हुआ है। तथा 1916 जनवरी माह में हिसार, हरियाण में भैंस केन्द्र में भैंस के बच्चे की भी उत्पत्ति हुई है। प्रजनन में प्रगति के होते हुए अच्छे नरों का प्रजनन के लिए चयन हो सका है प्रजनन की गतिविधियों के विकास से पशुओं में रोग नियत्रण में काफी साहयता मिली हे। आज कृत्रिम प्रजनन गाय भैंस के अलावा सुअर, घोडे, भेड़, बकरी, कुत्ता, खरगोस सैल्ट्री तथा वन्य जीवों में प्रचुरता से उपयोग में लाया जा रहा है।

1678 में लीवन हाॅक ने सर्वप्रथम शुक्राणुओं को लैंस के द्वारा देखा जिसको उसने एनीमैक्यूल का नाम लिया उसके 100 साल बाद 1784 में स्पैलैजिंन नाम के फादरी ने काकर स्पेनियल कुत्ते में कृत्रिम ग्रभादान द्वारा 4 बच्चे पैदा किये इसके 100 साल बाद 1897 में हीप ने कुत्ते, खरगोस तथा घोडे़ में कृत्रिम प्रजनन कराया इसके 100 साल बाद 1894 में कुत्ते तथा खरगोस में रसिया में इवानो द्वारा कृत्रिम प्रजनन कराया गया। रसिया में 1922 में घोडे में सीमन एक्टैण्डर बनाया गया तथा कृत्रिम योनी का आविष्कार किया तथा गायों में कृत्रिम गर्भदान 1962 और 1972 में जापान मेें विकसित हुआ भेडों में कृत्रिम गर्भादान 1933 से हो रहा है। तथा अति हिमकृत वीर्य का प्रयोग 1949 से प्रारम्भ है। परन्तु इसका सर्वाधिक प्रयोग 2000 के बाद शुरू हुआ। भेड़, बकरी, कुत्ता आदि का अति हिमकृत वीर्य उपलब्ध है। और इसे कई सालों तक रख सकते हैं, तथा इसको बडी आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया सकता है आजकल अति हिमकृत वीर्य तथा भूर्ण अन्ताराष्ट्रीय बातार में उपलब्ध है। भेड में कृत्रिम प्रजनन के लिए सावधानियां तथा उपयोग का वर्णन उत्तरांचल के परिप्रेक्ष्य में नीचे किया जा रहा है।

भेड़ प्रजनन तंत्र

भेड़ों में प्रजनन जाडा शुरू होने पर होता है। भेड़ जाडे़ के शुरू होने पर प्रजनन करती है। कुछ भेड पूरे साल प्रजनन करती है। उत्तराखण्ड में भेड़ो कि सख्यां में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भेड 2.5 गुना बड जाती है। ज्यादातर भेड़ें व्याहने पर 2 बच्चे देते हैं। बच्चों का बडना भेड़ के स्वास्थ्य एवं भेड के मैनजमैण्ट पर होता है मादा भेड़ 6-8 महीने में वयष्क हो जाती है। जबकी नर 4-6 महीने में वयष्क हो जाता हैं भेड हर 17 दिन पर सीजन में गर्म होती है। तथा यह 30 घण्टे तम गर्म रहती है। परन्तु नर सूंघ कर गर्मी को पहचान लेते हैं। भेडों की ग्यावन की जांच अल्ट्रासाउण्ड के द्वारा कि जा सकती है। भेड़े व्याहने के डेढ महीेने पहले पता चल जाता है। कि वो गर्भधारण किये हुए है या नहीं क्योंकि भेड 5 महीने मे व्याहती है। इसलिए 4 महीने पर यह अदांजा लगाना सम्भव है।

भेडों में कृत्रिम गर्भादान

भेड़ों में कृत्रिम गर्भादान न्यूजीलैण्ड तथा ऑस्ट्रेलिया में 2000 से किया जा रहा है उत्तरांचल में कृत्रिम गर्भादान तरल सीमन द्वारा 2014 से किया जा रहा है। भेडों में कृत्रिम गर्भादान इतना आसान नहीं है। जितना बकरियों में भेडों में गर्मी को पहचानना मुश्किल हो जाता है। तथा भेड़ की सरविक्स घूमी हुई होती है। इसलिए इसमें हिमकृत बीज से कृत्रिम गर्भादान नहीं किया जा सकता कुछ हार्मोनों के द्वारा भेड़ को गर्मी में लाना सम्भव है। जिसमें से T.G 600, CIPR स्टुमरेट तथा पोलीट्रोपिन V सहायक है। तरल सीमन से वजायना में सीमन रखना 40-60 की गर्भधारण की सम्भावना रहती है। परन्तु लैप्रोस्कोपी तथा P.M.S.G और प्रोजिस्ट्रोन के प्रयोग से 50-80 की गर्भधारण करने की रिपोर्ट है।

भेड का तरल सीमन 1960 से इस्तेमाल किया जा रहा है तथा 1983 से प्रोजन सीमन इस्तेमाल हो रहा है। प्रोजेन सीमन एक जगह से दूसरी जगह आसानी से ले जाया जा सकता है। तथा इससे नस्ल सुधार इनब्रीडिंग की समस्या का समाधान किया जा सकता है नर भेड से हफ्ते 2 या 3 बार सीमन प्राप्त किया जा सकता है। यह एक बार में आधा एमएल से 1.5 एमएल तक सीमन देता है। जिसमें से 60-80 डोज बनायी जा सकती है। इस प्रकार एक हफ्ते में 400-500 डोज प्राप्त कि जा सकती है। इन डोजों को फ्रीज करके काफी समय तक उपयोग किया जा सकता है भेड़ का प्रोजैन सीमन अन्ताराष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध है। तथा इसको लैप्रोस्कोपिक विधि से इस्तेमाल कर बच्चे पैदा करके नस्ल सुधार किया जा सकता है। लैप्रोस्कोपिक विधि तकनीकि आविका नगर राजिस्थान में विकसित कर दी गई है। जिसको उत्तरांचल में भी लागू किया जा सकता है लैप्रोस्कोपिक विधी अधिक सरल है । तथा यह प्रैक्टीकल है। और इसमें केवल 5 मिनट का समय लगता है। प्रोजेन सीमन तथा लैप्रोस्कोपिक उपलब्ध होने पर भेड़ पालन में क्रान्ती लाई जा सकती है।

भेडों में लैप्रोस्कोपिक मैथर्ड द्वारा A.I करना यह विधि भेड विकास में बहुत क्रान्तीकारी विधि है। भेड़ प्रजनन में समस्या यह है। कि अच्छी नस्ल के मैडे सन 84 में निर्यात किये गये थे तथा अब उनके बच्चों के बच्चों में ही प्रजनन हो रहा है। जिस कारण इन ब्रीडिंग होने से नई भेड़ की प्रजाति में मृत्युदर अधिक है। तथा इसके प्रजनन समन्धी समस्या भी है। इसके उपाय के लिए भेड़ के प्रोजन सीमन को मंगाकर उससे प्रजनन कराने पर समस्या का समाधान हो सकता है। इसके लिए पहले भेडों का चयन करने से उनकी गर्मी को सिनक्रोनाइज किया जाता है। जिससे वह भेड़ें एक साथ गर्मी में आय इसमें पहले 10 दिन तक प्रोजिस्ट्राॅन दिया जाता है। उसके बाद खत्म होने पर P.M.S.G का इंजैक्शन लगाया जाता है। गर्मी की पहचान के लिए नस बन्दी किये हुये मैडे का उपयोग किये हुए है। फिर भेड के फ्लैंक में छोटा सा चीरा लगाकर लैप्रोस्कोप की ट्राॅच द्वारा यूट्रस से प्रोजन सीमन छोड दिया जाता है। प्रशिक्षित डाॅक्टर इसको 5 मिनट में कर देता है। तदउपरान्त भेेड सामान्य रूप से चारा खाने लगती है। लैप्रोस्कोप का चित्र सलग्नं है।

कृत्रिम गर्भादान
Sheep Inseminationकृत्रिम गर्भादानभेड़ो में प्रजनन