यह भी पशुओं से मनुष्य में फैलने वाली बीमारी है। इस रोग का इतिहास भी बड़ा रोचक है। इंग्लैण्ड में 1796 में कुछ गायों का दूध निकालने वाली औरतों ने डाॅक्टर एडवर्ड जीनर को एक दिन यह बताया कि उनको पाॅक्स की बीमारी नहीं होती, क्योंकि वे पाॅक्स से ग्रसित गायों के साथ रहती हैं।
उस समय यानि की 17वीं सदी में पाॅक्स से संॅक्रमित होकर बहुत से लोग मर जाते थे। डाॅक्टर को भी यह जानकर बड़ा ताज्जुब हुआ। मगर ये सच तो था ही इसलिए उसने सोचा कि यदि अगर वो गाय के पाॅक्स के खुरंट को स्वस्थ मनुष्य की खाल को काटकर उस पर लगा देंगे तो शायद उसे भविष्य में पाॅक्स से बचाया जा सकता है। हुआ भी यही। जब उन्होंने ऐसा करके देखा तो सही में जिन लोगों का टीकाकरण उन्होंने पाॅक्स के खुरण्ड से किया था, उन लोगों को पाॅक्स नहीं हुई। इस तरह उन लोगों की जान बच गई, इस प्रकार से डाॅक्टर जीनर ने पाॅक्स से बचने का टीका आविष्कार करके जानलेवा पाॅक्स की बीमारी का अन्त किया। आज भी गायों को पाॅक्स से बचने के लिए गाय के पाॅक्स के विषाणु से टीका बनाते हैं। गाय में पाॅक्स की समस्या ज्यादा विकराल नहीं है। केवल थनों में दाने पड़ जाते हैं। कुछ दिनों के लिए दूध कम हो जाता है और हल्का बुखार आ जाता है। पशुओं में एक बार पाॅक्स हो जाने से दोबारा पाॅक्स नहीं होता परन्तु इसका टीका उपलब्ध है जो आप अपने पशु चिकित्सक से लगवा सकते हैं।