अजोला
सूखे में या बिना पानी के इस पौधे की मृत्यु हो जाती है। इसलिए पौधे को अजोला कहा जाता है। इसको मसकीटो फर्न, डक वीड फर्न, फेरी फर्न, फेरी मांस या वाटर फर्न कहते है। इस फर्न पती के नीचे एनीवीना एजोली नाम का जीवाणु लगा रहता है। जो कि वायुमण्डल से नाइटोजन लेकर यूरिया बनता है। यह फर्न एक सप्तकिलो0 से कम समय में ही अपने को दोगुना कर लेता है और इसकी 1 किग्रा मात्रा पशु को खिलाने से दुग्ध उत्पादन में 10 प्रतिशत की बढोतरी हो जाती हैै।
इसको उगाने के लिए आवश्यक है किः
- यह छाया में होता है।
- इसमें 5 से 6 ईंच पानी की सतह का होना अनिवार्य है।
- पानी का पीएच 5.5 से 7 होना आवश्यक है।
- वायु मण्डल में आर्द्रता 50 से 80 प्रतिशत होना आवश्यक है।
- 20° से 30° सें. ताप क्रम पर यह अच्छी प्रकार से उगता हैं।
- अधिक ठण्डे और गर्म मौसम इसका रंग लाल हो जाता है। यह पशुओ के लिए हानिकारक होता है।
- प्रतिवर्ग मीटर में 250 से 300 ग्राम होती है अर्थात 1 किग्रा अजोला के लिए 3 से 4 वर्ग मीटर की आवश्यकता होती हैं। तथा पशु को 1 किग्रा सुबह और 1 किग्रा सायं को खिलाने पर दुग्ध उत्पादन में 10 प्रतिशत की वृद्धि हो जाती है।
इसमें प्रति सप्तकिलो0 10 ग्राम उर्वरक प्रति वर्ग मीटर में दर प्रति सप्तकिलो0 देना पडता है। उर्वरक के मिश्रण की मात्रा इस प्रकार से हैः
- सिंगल सुपर फास्फेट 5 किग्रा।
- मैग्निश्यिम सल्फेट 750 ग्राम।
- यूरेट आॅफ पोटास 250 ग्राम।
- इसके लिए 2.5 मीटर लम्बी और 1.5 मीटर चैडी 10 ईंच गहरी पक्की क्यारी बनाई जाती है
- इसमें 3 ईंच मिटृी और 5 से 6 ईंच पानी भर दिया जाता है।
- इसमें उर्वरक तथा अजोला डालने से 3 सप्तकिलो0 में अजोला प्राप्त होने लगता है।
- यह बहुत तेजी से बढता है।
- हवा के झोके से या अधिक वर्षा से बह जाता है। इसलिए इसे ग्रीन हाउस में उत्पन्न करना चाहिए।
मोरंगा या सहेजन की खेती
मोरंगा या सहेजन की पत्ती कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पशुओं के लिए साल भर चारा प्राप्त कराती है। यह 100 मिट्रिक टन चारा प्रति हेक्टेर देती है। एक बार फसल लगानें से 3 वर्ष तक फसल देती है। इसका चारा अधिक प्रोटीन वाला तथा विटामिनों से भर पूर होता है।
आप इसके बारे में विशेष ज्ञान एनडीडीवी के यूटय्ब पर देख सकते है। तथा आप डा. सकसेन से 9425301288 पर संप क्र कर सकतें है। मोरंगा की खेती ऐसे स्थानों पर बहुत लाभकारी हैं जहां कि वर्षा बहुत कम होती है। मोरंगा का चारा खिलाने से पशुओं के वजन में 32 प्रतिशत वृद्धि होती हैं तथा दूध में 43 से 63 प्रतिशत तक वृद्धि होती है।