यह रोग शरीर में कैल्सियम की कमी होने से जानवरों के बियाने के कुछ दिन बाद होता है। इस रोग में शरीर में संग्रहित कैल्सियम हड्डियों में से निकलकर नहीं आता।
इसमें शरीर का तापक्रम 38 डिग्री सैंटीग्रेड से कम हो जाता है। इस रोग से शरीर में दुर्बलता आ जाती है। जानवर सुस्त हो जाता है और चारा भी नहीं खाता है। अगर कैल्सियम का इंजैक्शन न लगे तो जानवर मर भी सकता है। यह रोग पुराने, और बियाये हुए व अधिक दूध देने वाले जानवरों में ज्यादा होता है। इस रोग के बचाव के लिए कैल्सियम शरीर से बाहर न निकले, इसको रोकने के लिए साइकिल के पम्प से थन में हवा भर देते हैं। या गाय का दूध कम निकालते हैं या पिफर गाय का थोड़ा सा दूध उसे पिला देते हैं। गाय इंजैक्शन लगने के दस मिनट बाद ठीक हो जाती है। यदि गाय अधिक बीमार है, तो गाय 2-3 घंटे बाद खड़ी हो सकती है। ऐसे में यदि गाय लेटी हो तो उसे बोरी लगाकर बैठाया दिया जाता है। इस हालत में एक तो पशु को कैल्सियम तथा चारा खिलाएं और दूसरा रियूमिकेअर 12-12 घंटे बाद दो बार खिलाएंॅ तथा कैल्सियम के ओरल जैल पिलाएं। यदि अगर पशु पिफर भी न उठे तो तुरन्त डाॅक्टर को बुलाकर कैल्सियम का इंजैक्शन लगाना चाहिए।