इस बीमारी को ‘फैसियोलासिस’ भी कहते हैं। यह पत्तीदार पौंधों में पनपने वाला ‘जिगर’ का कीड़ा है। इसका जीवन चक्र चित्रा में दर्शाया गया है।
यह परजीवी अपने चक्र को गाय, भेड़, बकरी, भैंस तथा घोंघें में पूरा करता है।यह परजीवी घास में रहता है। इसका कीड़ा सूरज निकलने पर घास की पत्तियों में ऊपर चढ़ जाता है, फिर यह घास के साथ पशु के पेट में होता हुआ जिगर में जाकर, जिगर को खराब करता जाता है। इसकी वजह से पशु दुर्बल हो जाता है और पतले दस्त करने लगता है। उसके गले में सूजन आ जाती है। धीरे-धीरे पशु को पीलिया हो जाता है, और रक्त की कमी हो जाती है। वह दूध कम तो देता ही है, परन्तु कुछ हफ्ते बाद मर भी सकता है। इसके इलाज के लिए गोबर की जांच करके जिगर के कीड़ों की दवाई देनी चाहिए। ऐसा साल में दो बार करने पर इस रोग से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए समय-समय पशु के बीमार होने पर गोबर की जांच अवश्य कराएॅं। जो जानवर भूसा खाते हैं उनमें यह रोग नहीं होता है, जो जानवर चरने जाते हैं, उन जानवरों में ही ये रोग होता है, क्योंकि ये जीवाणु हरे चारे में ही होता है। इसमें टोलजन एफ वैट देतें है।