यह बीमारी चूहों से कुत्तों में और फिर कुत्तों से मनुष्यों में आती है। इस बीमारी में बुखार तथा बदन में दर्द होता है और नाक से खून भी आ सकता है। किडनी में भी खून आता है।
इस बीमारी से तभी बचा जा सकता है, जब डेयरी फाॅर्म में चूहें न हों। चूहे का पेशाब जब कुत्ता चाट लेता है, इससे वह बीमार हो जाता है। उसी से यह संक्रमण उसके संपर्क में आने पर मनुष्य तक पहुंचता है। यह पेशाब से पफैलने वाली बीमारी है। डाइआॅक्सी साइक्लीन के प्रयोग से इस बीमारी का उपचार किया जाता है। यह रोग भी मनुष्य से जानवरों में फैलता है। यह गर्मियों में गाय, सूअर, चूहा, कुत्ता तथा घोड़े में पफैलता है। यह रोग गुर्दे तथा प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है। इसमें बुखार और जानवर सुस्त हो जाता है। साथ ही जानवर का दूध गाढ़ा व पीला हो जाता है। ऐसे जानवरों को अलग रखना चाहिए तथा उसे अपने पशुचिकित्सक को लक्षण बताकर एंटीबायोटिक तथा बुखार के टीके लगवाना चाहिए। यही इसका उपाय है।