70 के दशक में रेडेन गायों की 20 गाय पंतनगर यूनिवर्सिटी एवं 20 गाय लुधियाना में आई। इनमें से कुछ गाय 40 लीटर से अधिक दूध देती थी। लेकिन कालान्तर में ये गर्मी के कारण एवं उचित वीर्य की सुविधा न होने के कारण ये धीरे- धीरे खत्म हो गई और उस समय यह सोचा गया कि इन गायों का हमारे देश में कृषक के यहां रहना संभव नही है।
हालांकि सेना के फार्म में कुछ ऐसी गाय थी जो कि लगभग 50 लीटर दूध देती थी। रेडेन गाय हाॅलिस्टीन से उत्पन्न है लेकिन यह लालन रंग की होती हैं।
फिर 2005 – 06 में उत्तरकाशी में श्री पैनोली जी नौटियाल जी के यहां ऐसी हाॅलिस्टीन गाय देखने को मिली जो कि 40 लीटर अधिक दूध देती थी इसका कारण अच्छे सांडों का बीज तथा पहाड का प्रतिकूल वातावरण था और यू.एल.डी.बी. से प्राप्त वीर्य टीकाकरण तथा चिकित्सा संबन्धी सहायता उबसे बडा कारण था। और अब 2015- 16 मेें देहरादून तथा पिथौरागढ़ में काफि पशुओं ने 40 लीटर से अधिक दूध दिया है। 2017 में देहराून की ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी की डेयरी में 1 गाय ने अखबार पत्र के अनुसार 54 लीटर तक दूध दिया। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में एक ऐसी डेयरी है जहां पर पहली ब्यायी हुई बछिया 35 से 40 लीटर दूध देती है और गाय 45 से 50 लीटर दूध देती है। इस डेयरी में सिर्फ बछिया पैदा करने वाले वीर्य का भी उपयोग करके गायों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।
इन अच्छी गायों को पैदा करने के लिए निम्नलिखित आवश्यकताएं होती हैः
- अच्छे बीज की उपलब्धता जो कि अमेरिका की ए.बी.एस. कम्पनी द्वारा भारत के प्रत्येक जिले में उपलब्ध है।
- मिल्किंग मशीन द्वारा गाय का 3 से 4 बार दूध निकालना।
- दूध को चिलर में ठंडा करने की सुविधा।
- पशुओं को मैस्ट्राइटिस तथा खुरपक से बचाना।
- ऐसे पशुओं को 20 डिग्री सेंटीग्रट से नीचे के तापक्रम पर रखना तथा बना-बनाया पशुआहार और साइलेज की उपलब्धता।
- और अच्छे पशु रखकर कम से कम गायों से अधिक दूध उत्पादन करना। अर्थात डेयरी का औसत उत्पान 20 से 35 लीटर होना आवश्यक है।
- पशु को थिलेरिया एवं बबेसिया से बचाना।
- 2017- 18 में हरियाणा एवं पंजाब में काफि ऐसे पशु हैं जो 40 से 50 लीटर दूध देते है।
इजराइल एवं राजस्थान की जलवायु एकसमान है जबकि इजराइल का औसत उत्पादन 35 लीटर है जबकि भारत के दूध उत्पादन का औसत 3 लीटर प्रतिदिन का है। यदि हरियाणा, पंजाब में यह संभव है तो उत्तराखण्ड में भी संभव हैै।