कुत्तों में कई प्रकार के वर्म होते है जो उन्हें हानि पहुचाते है। राऊण्ड वर्म, टेप वर्म, हार्ट वर्म, हुक वर्म तथा विप वर्म आदिबहुत महत्व रखते है। तथा हर प्रकार का वर्म अपना अलग जीवनचक्र रखता है।
प्रत्येक वर्म से भिन्न प्रकार का रोग होताहै। इसलिए उनके रोग के लक्षणों से वर्म को नहीं पहचाना जा सकता है। और इनकी जांच करना आवश्यक है। फिर भी लक्षणों से अनुमान लगाया जा सकता है।
- राउण्ड वर्म कुत्ते के बच्चों में होते है और ये मां के पेट से ही आ जातेहै। और इसके अंड़े मां के दूध में भी आते है। इसलिए बच्चों को कीड़ों की दवाई देना आवश्यक है। यह घातक हो सकते है लेकिन इसकी दवाई उपलब्ध है। यह कुत्ते से मनुष्य में आ सकते है जिसके परिणाम घातक होते है।
- टेपवर्म ऐसे छोटे जानवर जिनमें टेपवर्म होता है को खाने से या ये लाइस जिसमें टेपवर्म के अंड़े होते है को खाने से होता है।
यह फ्ली के खाने से कुत्ते में टेप वर्म हो जाता है। यह बहुत छोटी जूं के बराबर होती है और जूं की दवाई मेडिकेयर से मर जाती है।
- हुक वर्म छोटी आंत में रहते है। और यह खून चुसते है। यह मां के पेट से कुत्ते के बच्चों में आ जाते है। इससे वुफत्ते के बच्चों की मृत्यु भी हो जाती है। इसमें कीड़ों की दवाई कई बार देनी पड़ती है। तथा खून की कमी की भी दवाई देनी पडती है। ये जमीन पर नंगे पैर चलने पर मनुष्य में आ जाते है। हुक वर्म गीली मिट्टी से होताहैं इसलिए यह घास के मैदान में कुत्ते के खेलने से हो जाता है।
- हर्ट़ वर्म मच्छरों के एक बार काटने पर 6 माह बाद होता है। यह 14 ईंच लम्बा हो सकता है। यह दिल का रोग कर सकता हैं और कुत्ते की मृत्यु भी हो सकती है। प्रत्येक माह इसकी दवाई कुत्ते को देने से इस रोग छुटकारा पाया जा सकता है। इसमें आरसिनिक के इंजैक्सन लगा कर 1 माह तक कुत्ते को आराम दिया जाता है। इसमें कुत्ते को खांसी होती है। कृपया अपने चिकित्सक से संपर्क करें।
- विप वर्म चाबुक की आकृति का होता है। यह जहां छोटी और बड़ी आंत मिलती है, वहां रहता है। यह खून चूसता है। और इसमें मलमें दस्त के साथ खून भी आ सकता है। यह मिट्टी से कुत्ते केपेट में जाता है। इसका उपचार दवाई खिलाने से हो जाता है।
- लंग वर्म को खून की जांच से पहचाना जा सकता है। लंग वर्म लोमड़ी के मल या घोंगा खाने से होता है। इनके लक्षणों से कोई खास पता नहीं चलता है। कुत्ते के मल को देखने से भी वर्म का पता चलता है। और कुत्ते के मल को डॉक्टर के पास ले जाने पर ही पता लग सकता है। पेट में होने वाले विकारों से भी इनकी पहचान की जा सकती है। जैसे दस्त लगना, पेट में दर्द का होना, उल्टी करना।