आजकल ‘मनरेगा’ योजना की वजह से लेवर (मजदूर) मिलना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। हालत यह है कि लेवर, दस हजार रूपये महीने से कम में नहीं मिलती।
ऐसे में एक-दो पशु के लिए लेवर रखना ‘घाटे का सौदा’ है। आमतौर पर पशुपालक 100 लीटर दूध पैदा करके डेयरी उद्योग के जरिये अपनी गुजर-बसर करना चाहता है। डेयरी उद्योग कैसे सरसब्ज हो! कैसे पफले-पूफले! इसके लिए कुछ बुनियादी बातें गांठ बांध लेना बेहद जरूरी है। सबसे पहली बात तो यह कि पाले जा रहे जानवरों का रखरखाव ठीक हो। उन्हें सापफ-सुथरी हवादार और छांव वाली जगह पर रखा जाय। कोशिश यह हो कि अधिकतर हम उन्हें खुले बाड़े में ही रखें और खोल कर रखें। केवल दूध निकालते समय ही उन्हें बांधें। चित्रों के जरिये भी हमने उनके बाड़े और रहने की व्यवस्था आदि को समझाने की पूरी कोशिश की है। बाड़े का आकार, उसमें अधिकतम जानवरों की संख्या आदि भी विस्तार से समझाई गई है। जहां तक खुले बाड़े का सवाल है, इसमें आदमी आसानी से कई गायें रख सकता है। साथ ही इसके और भी कई पफायदे हैं। पहला तो यही कि खुला बाड़ा कम खर्चीला यानी किपफायती होता है। इसे बनाने में लागत बहुत कम आती है। संकर गायों के लिए खुला बाड़ा ही सबसे अच्छा होता है। उन्हें हमें सिर्पफ तेज धूप व तेज हवा से बचाना होता है। बाकी बारिश व ठंड आदि से उन्हें कोई पफर्क नहीं पड़ता। वे शून्य डिग्री तापमान पर भी आराम से रह सकते हैं। खुले बाड़े को हम मनमुताबिक छोटा या बड़ा कर सकते हैं।
खुले बाड़े में जानवरों के खुले रहने का एक बड़ा फायदा यह भी है कि जो पशु ‘हीट’ में आते हैं उनका पता चल जाता है। यहीं नहीं जानवर अपने को खुला और आजाद महसूस करते हैं। इधर-उधर चलते पिफरते रहने से उन्हें यथायोग्य व्यायाम भी मिलता रहता है। इसका फर्क उनके स्वास्थ्य और दूध उत्पादन पर भी पड़ता है। साथ ही उनकी देख भाल और सेवा टहल में भी आसानी होती है। कुल मिलाकर व्यवस्था यानी प्रबंधन आसान हो जाता है। खुले और बंद बाड़े के अन्तर को हमने चित्रों द्वारा समझाया है। बंद बाड़े में यदि हम सात गायें रख सकते हैं, तो खुले बाड़े में कम से कम 14 गायें रख सकते हैं। निर्माण लागत भी खुले बाड़े की बंद बाड़े से कहीं कम आती है। सापफ-सपफाई के लिए टेªक्टर भी आसानी से आ जा सकता है। इससे गोबर आदि की सपफाई में कापफी सहूलियत मिल जाती है।
यहां यह भी जान लेना जरूरी है कि यदि हम प्रति पशु दो किलो भूसा या लकड़ी का बुरादा, मूंगफली के छिलके, भूट्टे की गिली, गन्ने को खोई आदि डालें तो सप्ताह में एक बार ही गोबर सापफ करना पड़ेगा।
डेयरी उद्योग के लिए कुछ और बातें बेहद जरूरी हैं जैसे कि वहां चार-पांच दोहने के स्थान हों, बछड़ों के लिए जगह हो, बियाने वाली गायों के लिए स्थान के अलावा दाने व दवा आदि रखने के लिए पर्याप्त भंडारण व्यवस्था हो। साथ ही पशुओं के इलाज के लिए औषधालय का इंतजाम हो। ध्यान रखें कि पशुओं के बाड़े में खड़ी ईटों का खड़ंजा लगाना चाहिए तथा नाली चैड़ी व उथली होनी चाहिए। नाली में प्रत्येक फीट में 10 इंच का ढलान होना चाहिए। जैसा कि चित्रा में भी दिखाया गया है कि बाड़े की छत कम से कम 14 फीट ऊंची होनी चाहिए।
यह छत टिन या एस्बस्टस की होनी चाहिए। पक्की कंकर ईंट की छत की कोई आवश्यकता नहीं है। बाड़े के चारों ओर पेड़ लगाना अतिआवश्यक है। ये छाया के साथ शु( हवा भी देते हैं और तेज हवाओं को भी रोकते हैं। यहां हमने चित्रों के द्वारा बाड़े में खुले व बंद स्थान तथा नाद की लम्बाई आदि समझायी है।
बियाने वाली गाय के लिए 10 बाई 10 का हवादार कमरा होना चाहिये। ध्यान रहे, इस कमरे का तापक्रम 30 डिग्री से नीचे ही हो। उस कमरे में थोड़ा अंधेरा हो, यानी रोशनी कम हो। नीचे फर्श पर चार इंच मोटा भूसा या पराल बिछा हुआ हो। साथ ही इस कमरे में प्रचुर मात्रा में दाना तथा पानी हो। यहां यह भी जानकारी जरूरी है कि इन पशुओं की औसत लम्बाई सात पफीट होती है और ये पशु लेट कर बियाते हैं। ऐसे में उनके बियाने के लिए पर्याप्त जगह जरूरी है। अगर जगह कम है तो पैदा होने वाले बच्चे पर चोट इत्यादि लग सकती है। बियाने वाली गाय को ठंड कापफी लगती है इसलिए उसे बियाने से पूर्व तथा बाद में ठंडे पानी से नहीं नहलाना चाहिए। इसके लिए गुनगुने पानी का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
कृपया 10गाायों के लिए आवास का एरिया मय मैप सहित बतायें |