पशुओं के लिए चारा उगाना घास का चारा घास के बीजों से डेयरी पशुओं तथा मुर्गी, सूअर और बकरी के लिए उगाया जा सकता है। यदि हम वातावरण में कार्बन डाॅइ आॅक्साइड की मात्रा को बढ़ा दें तो 8 दिन से पहले भी चारा उगाया जा सकता है।
इस विधि द्वारा बाजरा, जई, लूसर्न, राई तथा अन्य स्थानीय घासों के बीजों को उगाया जा सकता है। यह विधि सूखा ग्रस्त अर्थात् बिना पानी वाले इलाकों में ज्यादा प्रचलित हो रही है। हालांकि यह विधि सूखे इलाकों मं काफी महत्व रखती है परन्तु धीरे-धीरे यह भारतवर्ष में अपनाई जाने लगी है। आस्ट्रेलिया तथा यू.एस.ए. में यह विधि काफी समय से अपनाई जा रही है। हाइड्रोपोनिक चारा इनके चारे की कीमत में 25 प्रतिशत की कमी कर देता है। हम 25 किलो हाइड्रोपोनिक उगाने के लिए 3 किलो मक्का, बाजरा, ज्वार या गेहूं का उपयोग कर सकते हैं।
इस विधि द्वारा चारा उगाने के लिए ग्रीन हाऊस में एक के ऊपर एक, तीन-चार पर्तों में ऐसी ट्रे को रखा जाता है। जिसमें तीन किलो दाना आ जाए तथा इसमें तीन किलो बीज एक दिन तक भिगोकर, 12 घण्टे के लिए कपडे़ से ढककर रखा जाता है तथा ट्रे के ऊपर फोगर लगाकर आर्द्रता को बढ़ाये रखा जाता है। इसमें बिजली तथा पानी के लिए नियंत्रित वातावरण 24 घण्टे में बनाया जाता है। इस पूरे कार्यक्रम में बिजली का रहना आवश्यक है। दुनिया भर में अकाल के कारण डेयरी जानवरों का रहना अति मुश्किल हो गया है। इसलिए हमको और विकल्पों को सोचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
अंकुरित दाने से चारे उगाने से हमको पोषक तत्वों वाला चारा मिल जाता है। पानी तथा खेती की मुश्किलों को देखकर बहुत सी कम्पनियों ने डेयरी पशुओं के लिए अंकुरित अनाज से इससे थोडे समय में काफी मात्रा में पौष्टिक चारा उगाना प्रारम्भ कर दिया है। 10-12 से 20 गायों को इस पद्धति द्वारा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है।
इस पद्धति से 6 से 8 दिन में चारा बनाया जा सकता है जिसको आप अपनी आवश्यकता अनुसार कभी भी पशुओं को खिला सकते हैं। बाजरे के बीज से चारा बनाना काफी प्रचलित है। बाजरे तथा गेहूं से अधिकतम 20-25 डिग्री अधिकतम तथा मक्का से अधिकतम 27 डिग्री तक चारा उगा सकते हैं, यानि की दिवाली से होली तक गेहूं तथा बाजरे से चारा उगायें तथा होली से दिवाली तक मक्का से चारा उगायें। चारा उगाने में आर्द्रता 60-65 प्रतिशत होनी चाहिए तथा यदि आर्द्रता ज्यादा हो जाती है तो फफूदीं लगने का डर रहता है।
इसमें उपयोग आने वाले पानी में 250 पीपीएम से अधिक ठोस पदार्थ नहीं होने चाहिए। तथा पानी का पी.एच 6 से 6.5 तक होना चाहिए यानि इसका पानी अम्लीय होना चाहिए जब अंकुरित बीज हरे होने लगं तब उन्हें प्रकाश की आवश्यकता होती है। जो कि सोलर लैम्प या एलईडी लाइट से दिया जा सकता है। चारा उगाने की क्रिया चार चरणों में की जाती है।
पहला चरण- पहले चरण में अनाज को 12-24 घण्टे पानी में भिगोते हैं तथा इस पानी में एक प्रतिशत क्लोरीन मिला लेने से बीजों पर लगी हुई फफूंदी मर जाती है। आप क्लोरीन की जगह हाइड्रोजन परआॅक्साइड या डोमैक्स का इस्तेमाल भी कर सकते है।
दूसरा चरण- दूसरे चरण में पानी को निकाल देते हैं। तथा बीज को 3-4 बार धोते है। जिससे क्लोरीन निकल जाए फिर इस बीज को टाट में लपेटकर अंधेरे में गर्म स्थान पर 24 घण्टे के लिए रख देते हैं यदि अगर आपने 2 किलो अनाज को भिगाया है तो 2 फुट बाई 3 फुट इंच की लम्बाई व चैड़ाई तथा 3 इंच की ऊंची ट्रे में बीजो को फैला देते हैं। तथा यह सुनिश्चित करें की ट्रे में नीचे छेद हों जिससे डाला गया पानी आसानी से बाहर बह जाए एवं बीज पानी में डूबे न रहें यानि की बीजों को प्रर्याप्त मात्रा में आॅक्सीजन मिलती रहे। दिन में 3-4 बार फुहारे से पानी दें तथा यह ध्यान रखें की तापक्रम 20 डिग्री गेहूं या बाजरे के लिए के बीच में रहे मक्के के बीजाें के लिए तापक्रम 27 डिग्री सैंटीग्रेड तक होना चाहिए।
इस प्रकार 7-8 दिन में हरा चारा बन कर तैयार हो जाएगा तथा इसकी जडे़ं चटाई का रूप बना लेगीं इस चटाई को ऐसे ही पशुओं को खिला सकते हैं इसमें आपको चारा खेत से काटकर लाने की आवश्यकता नहीं है। इस पद्धति से चारा उगाने में चारे के लिए जमीन एवं खाद्य की भी आवश्यकता नही है। दाने में इतनी मात्रा में चर्बी होती है की वह अपना अंकुरण कर सकता है तथा अंकुरण के बाद जब वह पौधा हरा हो जाता है तब वह प्रकाश और पानी से अपना भोजन बनाकर बढ़ता है अर्थात इस पद्धति में जमीन तथा खाद की कोई आवश्यकता नहीं होती तथा एक किलो दाने से प्रकाश और जल की उपस्थिति में 8 किलो चारा 8 दिन में बन जाता है। इस चारे को उगाने की 7-8 दिन की क्रिया को चित्रों में दर्शाया गया है।
हाइड्रोपोनिक विधि से चारा उगाने का लाभ हाइड्रोपोनिक विधि से चारा उगाने का लाभ
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- पानी की बचत तथा सूखे की स्थति में चारा उत्पादन। डेयरी पशुओं की कीमतों में कमी। चारे की बरबादी की बचत क्योंकि इसमें पशु अंकुरित बीजों की जड़ को भी खा जाता है।
- चारे की पौष्टिक गुणवत्ता में वृद्धि। छोटे से क्षेत्रा में चारा उगाना उदाहरण के लिए 72 बाई 72 फीट में 10 पशुओं के लिए चारा उगाया जा सकता है। जमीन की उपलब्धता की जरूरत नहीं।
- चारे का अधिक पाचक होना विटामिन तथा मिनरल का संग्रहित होना पी.एच. को कम करना इनजाइम की प्रकृति में वृद्धि उमेगा थ्री फैटी एसिड एवं अमीनों ऐसिड में वृद्धि । बचत हर मौसम में चारे की उपलब्धता।