दक्षिण-पूर्वी एशिया में दूध का विवरण बकरी एवं भेड़ के दूध से मिलता है इसका समय ईसा से 7 से 8 हजार वर्ष पूर्व का है। यूरोप में दूध का विवरण ईसा से 4 हजार से 5 हजार वर्ष पूर्व से मिलता है।
गाय के दूध का प्रचलन मनुष्य ने तब शुरु किया जब वह कबीलों का जीवन छोडकर एक स्थान पर रहकर कृषि करने लगा। दूध में एक चीनी लैक्टोज के नाम से होती है जिसको लैक्टेज एंजाइम द्वारा बच्चों में लैक्टेज को हजम करने की शक्ति होती है। लेकिन यह शक्ति व्यस्क मनुष्यों में नही होती है। कालांतर में यह लैक्टोज को तोडने की शक्ति व्यस्क में भी विकसित हो गई और वह भी दूध का उपयोग करने लगे। अब भी मनुष्य जाति में अरब में रहने वाले लोग, एस्कीमोज ध्रुवों पर रहने वाले लोग एवं दक्षिण-पूर्वी देशों में लैक्टोज को तोडने के लिए लैक्टेज एंजाइम नहीं होता है अर्थात उनमें दूध को हजम करने की शक्ति नही होती है इसके विपरीत उत्तर भारत के लोगों एवं यूरोपियन, अमेरिकन और रसियन लोगों में व्यस्क मनुष्यों द्वारा दूध को पचाने की शक्ति है। लेकिन आदि काल से ही मनुष्य मक्खन एवं चीज का उपयोग करता आया है जो कि लैक्टोज से रहित होता है। दूध के उद्योग के विकास में लुईस पाश्चर द्वारा दूध के पश्चराइजेशन से दूध के व्यवसाय में 19वीं सदी के अंत तथा 20वीं सदी के शुरु में उद्योगीकरण ने बहुत तेजी से प्रगति की है।
गाय, भैस, बकरी का दूध जब दूध संयन्त्रा में बटने के लिए जाता है उससे पहले उसे होमोजैनाइज करते है। इस क्रिया में विभिन्न प्रकार के दूध में पाए जाने वाले पफैट के ग्लोब्यूल को मनुष्य के दूध के साइज का कर दिया जाता है। तथा दूध में किसी प्रकार की हीक न आए इसके लिए उसका भी डी-ओड्रेडाइजेशन किया जाता है। जो दूध बटता है उसमें 3 प्रतिशत वसा होती है और 3.2 प्रतिशत प्रोटीन होती है। अधिक मात्रा को दूध से निकाल लिया जाता है। केवल 20 प्रतिशत पफैट ही दूध में से निकाल लिया जाता है।