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डेयरी खोलने के लिए दुग्ध पषुओं का चयन

UK Atheya / Buffalo Breed, Cattle Breeds, Cattle General Information, Cattle Milk Production, Cattle Reproduction, Dairy, Milk Production /
Indian breeds of cows

डेयरी खोलने में भैस के लिए मुर्रा भैंस रखी जाती है। लेकिन गाय की डेयरी खोलने में यह प्रश्न उठता है कि देशी गाय रखे या विदेशी गाय रखें। दूध देने वाली देशी गायों में प्रमुख जातियां साहिवाल, गिरि, थरपारकर, हरियाणा एवं कंकरेज गाय है। लेकिन साहिवाल गाय तथा गिरि गाय अधिक ख्याति प्राप्त कर रही है। साहिवाल गाय पाकिस्तान के साहिवाल क्षेत्र से जो कि अमृतसर से लगा हुआ क्षेत्र है। यहां पर ये गाय सदियों से पाली जा रही है।

यह पशु बिमारी, वाहय परजीवी एवं रोगो से वंचित रहती है, इस पर गर्मी का कोई प्रभाव नहीं पडता है। यह गाय पहली बार ब्यानें में 4 वर्ष का समय लेती है। तथा जहां फार्मो पर अधिक मात्रा में रखी गई है जैसा कि पंतनगर का पंतनगर फार्म, मेरठ का सीआईआरसी (सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट आॅफ कैटिल रिसर्च) तथा लखनऊ का चक्क गजरिया फार्म। यहां पर इनका औसत उत्पादन 6 से 7 लीटर प्रतिदिन का होता है लेकिन कुछ गाय 15 से 20 लीटर दूध प्रतिदिन भी देती देखी गई है।

यह गाय अधिकत्तर आश्रम तथा सरकारी संस्थानों में ही रखी जा रही है। क्योंकि जब पशुपालक अपने पास इन गायों को रखता है तो अच्छे साहिवाल ब्रीड के अभाव में ये गाय संकर गायों में बदल जाती है और फिर धीरे-धीरे ये गाय लुप्त हो जाती है। ये गाय स्ट्रोपिकल वातावरण (जहां तापक्रम 10 से 40 डिग्री एवं आंर्द्रता 60 से 70 प्रतिशत होती है।) इसलिए ये गाय उत्तरी भारत में आसानी से पाली जा सकती है। कंकरेज, हरियाणा तथा थरपारकर भारतीय ब्रीड हरियाणा, राजिस्थान तथा गुजरात के गर्म एवं शुष्क क्षेत्रों के लिए जहां सर्दी अधिक नही होती है। तथा इनकी अच्छी नस्ल का वीर्य बीदज एनडीडीबी (राष्ट्रीय डेयरी बोर्ड) से प्राप्त हो जाता है। जिसको प्राप्त करना व्यवहारिक रुप से संभव नहीं है। केवल गुजरात और राजिस्थान में कंकरेज तथा थरपारकर का बीज उपलब्ध है।

भारतीय नस्लों में गिरि गाय रखना ही अधिक सफल हो रहा है क्योंकि इसका वीर्य ब्रजील से आयात करके अमेरिका ब्रीडिंग एसोएसन एबीएस द्वारा वितरित किया जा रहा हैै। इनकी दूध देने की क्षमता 20 से 30 लीटर प्रतिदिन पैदा करने का क्षमता है। सेक्स सीमन भी उपलब्ध है। इस गाय की भविष्य में प्रचलित होने की संभावनाएं है। इसकी किमत एक लाख से अधिक है।
इनके चित्र नीचे दिए गए है।

Indian Cow Breeds
Tharparkar
Indian breeds of cows
Kankrage cow
Indian Cow Breeds
Haryana Cow
Indian Cow Breeds
Gir Cow
Sahiwal Cow
Indian buffalo breeds

सिंघवा खास, रोहतक, हरियाणा की लक्ष्मी भैंस जिसकी कीमत 25 लाख रुपये है।

भैंस 10 से 12 बार ब्यानें के बाद भी बिक जाती है लेकिन गाय का बुढापें में बिकने की समस्या विकट है। विदेशी नस्ल की गाय वर्ष के 12 माह दूध देती है जबकि भैंस गर्मी में कम और सर्दियो में अधिक दूध और देशी गाय गर्मियों दूध देती है एवं यह बिना बच्चे के दूध नहीं देती है।

इसे अंग्रेजी में पढ़ें

हाॅलिस्टीन गायों का इतिहास

यह गाय 2000 वर्ष से नीदरलैण्ड़ से विकसित हुई है। यह गाय वीटाविनस गाय जो की काली होती है। तथा एफ.आर. आई.ई.एन.एस. जो कि सफेद रंग की होती है। उनके सहयोग से बनाई गई है। यह गाय नीदरलैण्ड से अमेरिका 1861 तक ले जाई गई। 1885 में एच.एफ. एसोएसन आॅफ अमेरिका बना। 1994 हाॅलिस्टीन एसोशियेशन यू.एस.ए. बना। 1940 के बाद अतिहिमकृत बीज का प्रचलन बढ़ा जिससे 90 प्रतिशत गाय इसी से उत्पादित होने लगी। एक सांड से 50,000 गाय गर्भित की सकी। अब इसका ऐसा वीर्य उपलब्ध है जिससे केवल बछिया पैदा होंगी तथा ए2 केसिन वाली हाॅलिस्टीन पैदा होंगी।

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हाॅलिस्टीन

2010 में अवरग्रीन व्यू माई 1326 ई.टी. नाम की गाय ने 72,107 पाउण्ड दूध (करीब 36,000 लीटर) 365 दिन में उत्पादित किया। ऐसी गाय तीन से चार ब्यांत चलती है। किन्तु कनाड़ा की एक गाय ने 11 ब्यांत में 200 हजार लीटर दूध दिया। यानि कि प्रति ब्यांत 20 से 22 हजार लीटर दिया।
अमेरिका में मशीन द्वारा 3 बार दूध निकालने से दूध में 17 प्रतिशत की बढोतरी हुई तथा अमेरिका में दाना चारा साथ दिया जाता है। रसया की कोशरोमा गाय भी 25 साल तक जीवित रहती है। अमेरिका में 10 मिलियन पशु दूध देते है जिसमें 9 मिलियन हाॅलिस्टीन है।

अमेरिका में 1500 गायों के काफी सारे फार्म है। लेकिन अधिकत्तर 30 गाय ही रखते है। भारतवर्ष में 3 या 4 चार गायों की डेरियां है। भारत में दूध उत्पादन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, आंध्र प्रदेश में अधिक है। तथा भैंस के दूध का उत्पादन पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अधिक होता है। उत्तर प्रदेश के मेरठ में महाराजा नाम के सांड की कीमत 9 करोड़ लग गई है। यह सांड प्रति माह 8 लाख की वीर्य उत्पन्न करता है।

भारत की देशी गाय 2 से 3 लीटर औसत दूध उत्पादन करती है। जिन क्षेत्रों में हरित क्रांति हुई हैं एवं जो क्षेत्र सिंचित हैं वहां पर हाॅलस्टीन तथा जर्सी गायों का औसत उत्पादन 10 लीटर तक पाया गया है। परन्तु कृषि के यांत्रिकरण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में लोग भैंसो को रखना अधिक लाभकारी मानते हैं क्योंकि भैंस बुढ़ी होने पर भी अच्छी कीमत दे जाती है, जबकि गायों को गौशाला या सड़क पर छोडने के शिवाय कोई उपयोग नहीं है। हाॅलिस्टील एसोशियन अमेरिका ने ऐसी हाॅलिस्टीन का चयन किया है। जो कि भारत, इजराइल तथा अरब की भीषण गर्मी में भी आसानी से रह कर औसतन 30 लीटर दूध प्रतिदिन देने में सामर्थवान है।

पंजाब, उत्तराखण्ड, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तथा बंग्लूर में इन गायों के उत्पादन से अपनी जमीन से कृषि से अधिक आय अर्जित कर रहें है। यह गाय आसानी से प्रबन्धन योग्य है। तथा इन गायों में मिलिकिंग मशीन लगाने की भी कोई दिक्कत नहीं है। मिलिकिंग मशीन तथा अपने सीधेपन के कारण इन्हे नियंत्रित वातावरण में रखकर डेयरी उद्योग का उद्योगिकरण कर रहे है। यह गाय एक माह में 500 से 1000 लीटर दूध आसानी से दे देती है। इन गायों को रखने के लिए विशेष आवास की व्यवस्था भी नहीं हैं यह 0 डिग्री सेंटीग्रेट से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तक आसानी से रह लेती है। इनको केवल धूंप से बचाने के लिए छाया की आवश्यकता होती है।

ऐसा नहीं कि इन गायों में कोई समस्या नहीं है। यह गाय थनैला, खुरपक, मुँहपक, गर्भपात, अधिक गर्मी, अधिक आंर्द्रता तथा आंत्रिक तथा वाहय परजीवी एवं भयंकर खून के परजीवियों से, देशी गायों की तुलना में अधिक प्रभावित होती है इनको विशेष चिकित्सा टीकाकरण की उपलब्धता न होंने पर नहीं रखा जा सकता है। और इनके आहार का भी विशेष ध्यान रखना पडता है।

गाय में टीकाकरण और डी-वॉर्मिंग के लिए इस लिंक को देखें

हाॅलिस्टीन पालने की परेशानियां

  • इन गायों के लिए हरा चारा आवश्यक है।
  • यह गाय 25 डिग्री संटीग्रेट से ज्यादा तापक्रम सहन नही कर पाती है।
  • यह गाय बार-बार ग्याभिन (रीपीर्ट बीडर) होती है। यह गाय तथा इसके बच्चे अधिक बीमार पडते है।
  • इन गायो को रक्त का परजीवी बबेसिया तथा थिलेरिया हो जाता है जिससे ये पशु बडी संख्या में मरते है।
  • थिलेरिया हाॅलिस्टीन गायो के बच्चो के मरने का प्रमुख कारण है।
  • थिलेरिया का रोग अपनी देशी गायो में नहीं लगता है।
  • हाॅलिस्टीन गाय के बछडे हल में चलने में बेकार होते है।
  • इन गायो को थनेला रोग शीघ्र हो जाता है।
  • इनके पोषण का विशेष ध्यान रखना पडता है।

हाॅलिस्टीन पालने के लाभ

  • यह गाय 15 से 30 लीटर तक की मात्रा में दूध देने की क्षमता रखती है।
  • इस गाय का प्रबन्धन आसान होता है क्योंकि यह बिना बच्चे के दूध दे देती है और यह लात नहीं मार सकती है।
  • यह ईलाज के लिए आसानी से काबू में आ जाती है।
  • हाॅलिस्टीन 10 गायो की डेयरी से 100 से 150 लीटर दूध प्रतिदिन उत्पादित किया जा सकता है।
  • हाॅलिस्टीन गायो का बीज सभी पशु चिकित्सकों के पास आसानी से उपलब्ध होता है।

जर्सी

जर्सी गाय जर्सी आयरलैण्ड से है जो कि इंग्लैंड के पास है। ये गाय हाॅलिस्टीन से छोटी होती है और सूखे चारें एवं दाने पर रह जाती है। इनका प्रजनन काफी आसान होता है।

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जर्सी

यह 2 वर्ष की उम्र में ब्याह जाती है। और यह हाॅलिस्टीन से दूध तो कम देती है लेकिन इसके दूध में चिकनाई उसके दूध से अधिक होती है। इस गाय का दूध आइस्क्रीम, खोया एवं पनीर बनाया जाता है। यह सर्दी एवं वर्षा को आसानी से सहन कर लेती है। यह खुले बाडे में रखने के लिए उपयुक्त है।

गिरओरलेण्डो गाय

यह गाय अतिउत्तम गिरी तथा हाॅलस्टीन के क्राॅसब्रीड के प्रजनन से जन्मी गाय है। इसे कम गर्मी लगती है और बीमारी भी जल्दी से नहीं लगती।

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गिरओरलेण्डो गाय

गिरओरलेण्डो के बीज एबीएस इंडिया सीमेन सप्लायर से दिये गये पफोन नं. पर सम्पर्क कर प्राप्त कर सकते हैं, सम्पर्क सूत्र- 07500325000 तथा 07502999804। यह कम्पनी ऐसा बीज भी देती है जिसमें केवल बछिया ही पैदा होती है।

  • इन गायों के लिए हरा चारा आवश्यक नहीं है।
  • यह गाय 25 डिग्री संटीग्रेट से ज्यादा तापक्रम सहन कर लेती है।
  • यह गाय असानी से ग्याभन हो जाती है। यह गाय तथा इसके बच्चे अधिक बीमार नहीं पडते है।

पढ़ें भैंस की प्रमुख नस्लें

भारतवर्ष में दुग्ध का उत्पादन

भारतवर्ष में दुग्ध का उत्पादन निरन्तर प्रगति पर है इस प्रगति का सारा श्रेय अति हिमकृत वीर्य और तरल नाइट्रोजन की उपलब्धता, भारत सरकार के प्रदान करने के फल स्वरुप हुआ है। सभी प्रजातियों का उत्तम वीर्य साधारण गोपालक के लिए उसके बजट के अनुसार उपलब्ध है। लेकिन अतिउत्तम हाॅलिस्टीन (जो 30 लीटर दूध प्रति दिन देने वाली) एवं 20 से 30 लीटर दूध प्रतिदिन पैदा करने वाली गिरि गाय का सीमन एवं बछिया पैदा करने वाला बीज साधारण गोपालक के लिए कुछ कठीन है।

लेकिन जो पशुपालक अच्छा लाभ कमा रहे है वे अमेरिकन ब्रीडिंग एसोएसन एबीएस से प्राप्त किये हुए लाभ का देखते हुए इस ओर आकर्षित हो रहे है भारत में पंजाब, हिमाचल, उत्तराखण्ड, हरियाणा एवं बंग्लुरु में यूरोप एवं अमेरिका में पैदा होन वाली जर्सी एवं अधिक मात्रा में दूध देने वाली गाय यहां भी आसानी से रखी जा रही है। निकट भविष्य में अच्छी पशु चिकित्सा पशुपोषण, पशुपोषण को अपनाकर डेयरी उद्योग में प्रत्यक्ष रुप से प्रगति दिखाई दे रही है। 2017 से सेक्सड सीमन (केवल बछिया पैदा करने वाले वीर्य) की उपलब्धता से क्रांतकारी परिवर्तन आने वाले समय में दिखाई देगा।

हमारे देश में 50 में प्रतिशत दूध भैंस से, 25 प्रतिशत विदेशी गायों से, 21 प्रतिशत देशी गाय से एवं 4 प्रतिशत बकरी से उत्पादित होता है।

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स्रोतः www.imarcgroup.com

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