कुत्तों के सौन्दर्य प्रसाधन एवं ईलाज के लिए काफी चिकित्सालय खुलते जा रहे है। जहां कि टीकाकरण एवं वाहृ एवं आंत्रिक परजीवियों, एलर्जी, खाल के रोग आदि का उपचार कराना आवश्यक है क्योंकि यह रोग वुफत्तें से मनुष्य में पैफल जाते है और इससे मनुष्य के जीवन को भी खतरा हो सकता है। जैसे हुक वर्म का रोग वुफत्तों से मनुष्य में आ जाता है। तथा टेप वर्म के लार्वा मनुष्य में दिमाग या जिगर की रसोली कर सकता है। और पागल वुफत्तें के काटने का इलाज न कराने से मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।
जब तक कुत्ते का बच्चा अपनी मां के साथ रहता है और यदि मां का टीकाकरण हो चूका होता है, तो मां के दूध से ही बच्चे को प्रतिरोधक क्षमता मिलती रहती है। परन्तु मां से अलग करने पर उसका टीकाकरण अति आवश्यक हो जाता है। अधिकत्तर अच्छी कीमत वाले कुत्ते टीकाकरण एवं परजीवियों से उपचारित होकर 3 माह से अधिक आयु में बिकते है। परन्तु यदि आप छोटा बच्चा, 3 माह काद्ध खरीदते है। तो आप उसे डिस्टैम्पर, पार्वो एवं हिपेटाइटिस से संपूर्ण टीकाकरण कराना न भूलें। यदि आपका पिल्ला अन्य कुत्तों के संपर्क में नहीं आता है तो आप रैबीस का इंजेक्सन अपनी सहुलियत के अनुसार लगवा सकते है।
इस पुस्तक में टीकाकरण का इतिहास, इम्यूनोलोजी; प्रतिरोधक क्षमताद्ध के पूरे तंत्रा, रक्त की संरचना, परजीवियों का जीवन चक्र, त्वचा के रोग में आवश्यक सावधानियो और एंटीबॉड़ी के विकसित होने का संपूर्ण विवरण प्रस्तुत है।
वुफत्तों की सुंघनें एवं सुनने की क्षमता बहुत अधिक होती है जिससे ये विस्पफोटकों की पहचान कर लेते है। इन्हीं गुणों के कारण सुरक्षा की दृष्टि के कारण ये विशेष स्थान रखते है