देशी नस्ल की गाय
गिरी गाय
गुजरात के जूनागढ़ की एग्रिकल्चर यूनिवर्सिटी में गिरी गायों का फार्म है।
यह फार्म 1920 में जूनागढ़ के नवाब द्वारा बनाया गया था। आजादी के बाद 1947 में यह सौराष्ट्र की सरकार को हस्तांतरित कर दिया गया तथा 1960 में यह गुजरात सरकार को दे दिया गया। 1972 में जब गुजरात एग्रिकल्चर यूनिवर्सिटी बनी तब यह गुजरात यूनिवर्सिटी के पास आ गया फिर 2004 में यह जूनागढ़ एग्रीकल्चर यूनिर्सिटी के पास आया। यहां की गाय औसत दूध उत्पादन 7.5 लीटर प्रतिदिन है।
गुजरात के जसधाम गौसेवा फार्म मंे बहुत सी गायें ऐसी हैं, जो की 305 दिन के ब्यांत में 6000 लीटर से ज्यादा दूध देती हैं। हिराल गाय जिसने 8200 लीटर दूध दिया है, परन्तु ब्राजील की कुछ गिरी गाय 100 लीटर दूध प्रतिदिन देती है। तथा ब्राजील की गिरी गाय का सीमेन से उतम गिरी गाय भारत वर्ष में पैदा हो रही है।
लाल सिंधि गाय
लाल सिंधी गाय पाकिस्तान के सिंध प्रान्त से है। यह पूरे पाकिस्तान मंे दुग्ध उत्पादन के लिए पाली जाती हैं। इनको बांग्लादेश तथा श्रीलंका में भी ले जाया गया है।
झारखण्ड के हजारी बाग जिले मंे इस नस्ल की 350 गायांे को सुरक्षित रखा गया है। इतनी ही संख्या का एक फार्म कालसी देहरादून में स्थित है। उत्तरांचल में उत्तरांचल लाइव स्टॅाक डेवलपमैण्ट बोर्ड इस गाय को संकर गाय बनाने में उपयोग कर रहा है। जिनका औसत दुग्ध उत्पादन भरपूर चारा, दाना के बाद भी औसतन 6-7 लीटर प्रतिदिन है हालांकि कुछ गायंे 15 लीटर तक दूध देती हैं। भारतवर्ष में इस वक्त कुल करीब 1000 सिंधी गायें हैं।
साहिवाल गाय
साहिवाल हिन्दुस्तान की दूध देनें वाली सबसे अच्छी गाय है। यह गर्मी को असानी से सहन कर लेती है। इस गाय में बकिलो0री तथा आंतरिक परजीवी नहीं होते।
यह औसतन 2270 किलो दूध प्रति व्यात देती है। बहुत सी साहिवाल 20 लीटर प्रतिदिन दूध देती हैं। इनका रंग लाल होता है। कुछ साहिवाल सफेद तथा लाल भी होती हैं।
थरपारकर गाय
यह गाय मूल रूप से पाकिस्तान के थरपारकर जिले से है तथा यहा गर्म जलवायु में दूध देने की क्षमता रखती है। तथा यह एक दिन में 8 से 10 ली0 दूध देने की क्षमता रखती है। करनाल के राष्ट्रीय अनुसन्धान केन्द्र पर बाउन स्विस जाति के बीज से क्राॅस करा कर करनाल सुइस नाम की शंकर गाय की उत्पत्ती हुई है।
राठी गाय
यह भारतीय नस्ल की गाय राजस्थान के बीकानेर, गंगानगर तथा हनुमान गढ डिस्ट्रीक मे पाई जाती है यह गाय साहिवाल से मिलती जुलती है यह मुख्यता दूध वाली गाय है यह 8 से 10 ली0 दूध देने की क्षमता रखती है।
हरियाणा गाय
इसके बछडे खेती में काम आते है तथा यह गाय 8 से 10 ली0 दूध प्रतिदिन देती है यह सफेद रंग की होती है यह हरियाण में पायी जाती है।
नोटः यह सभी भारतीय नस्ले गर्मी को 40 से 45 डिग्री सेंटीग्रेट को सहन करने की क्षमता रखती है एवम यह निम्न प्रकार के चारे और दाने पर असानी से पाली जाती है तथा इनको बाह्यय परजीव नही लगते। इनको रोग तथा प्रजनन कोई समस्या नही होती परन्तु इनकी सख्या शंकर गाय पैदा करने की वजह से कम हो गई है। इन गायो का औसत उत्पादन केवल 6 से 7 किला.े ही होता है। परन्तु पृथ्वी का तापमान बढने की वजह से इनका महत्व आने वाले समय मे बढे़गा। अब ट्रेक्टर की वजह से बैलो की कोई आवश्यकता नही है। और अब बछिया पैदा करने वाला वीर्य उपलब्ध है।
विदेशी नस्ल की गाय
हाॅलिस्टीन गाय
यह गाय 2000 वर्ष से नीदरलैण्ड़ से विकसित हुई है। यह गाय नीदरलैण्ड से अमेरिका 1861 मे ले जाई गई। 1885 में एच.एफ. एसोएसन आॅफ अमेरिका बना। 1994 हाॅलिस्टीन एसोशियेशन यू.एस.ए. बना। 1940 के बाद अतिहिमकृत बीज का प्रचलन बढ़ा जिससे 80 प्रतिशत गाय इसी से उत्पादित होने लगी। एक सांड से 50,000 गाय गर्भित की जा सकती। अब इसका ऐसा वीर्य उपलब्ध है जिससे केवल बछिया पैदा होंगी।
तथा ए2 केसिन वाली हाॅलिस्टीन पैदा होंगी। 2010 में अवरग्रीन व्यू माई 1326 ई.टी. नाम की गाय ने करीब 36,000 लीटर दूध 365 दिन में उत्पादित किया। किन्तु कनाड़ा की एक गाय ने 11 ब्यांत में 200 हजार लीटर दूध दिया। अर्थात प्रति ब्यांत 20 से 22 हजार लीटर दिया। औसत 70 ली दूध प्रतिदिन दिया। हाॅलिस्टील एसोसिएसन अमेरिका ने ऐसी हाॅलिस्टीन का चयन किया है। जो कि भारत, इजराइल तथा अरब की भीषण गर्मी में भी आसानी से रह कर औसतन 30 लीटर दूध प्रतिदिन देने में सामर्थवान है। पंजाब, उत्तराखण्ड, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तथा बंग्लूर में इन गायों के उत्पादन से अपनी जमीन से कृषि से अधिक आय अर्जित कर रहें। यह गाय एक मकिलो0 में 500 से 1000 लीटर दूध आसानी से दे देती है।
ब्राउन स्विस गाय
यह स्वीजरलैंड की गाय है। यह गाय 600 से 900 किलो तक वजन की होती है। यह भूरे रग की होती है इसके कानो के बाल लम्बे होते है। इसके खुर तथा नाक काली होती है बा्रउन स्विस पहाडी इलाको के लिए सबसे अच्छी गाय है इसके प्रेग्नेट में कोई समस्या नही होती है इसकी उम्र बहुत ज्यादा होती है इसकी गाय प्रतिमकिलो0 700 से 800 ली0 दूध देती है यह अपने ब्याने पर दस महीने में 8000 ली0 दूध देने की क्षमता रखती है।
जर्सी गाय
ये गाय हाॅलिस्टीन से छोटी होती है और सूखे चारें एवं दाने पर रह जाती है।
इनका प्रजनन काफी आसान होता है। यह 2 वर्ष की उम्र में ब्यकिलो0 जाती है। और यह हाॅलिस्टीन से दूध तो कम देती है लेकिन इसके दूध में चिकनाई हाॅलिस्टन के दूध से अधिक होती है। इस गाय का दूध आइस्क्रीम, खोया एवं पनीर इत्यादि बनाने मे काम आता है।
शंकर गाय
गिरओरलेण्डो गाय
यह गाय अतिउत्तम गिरी तथा हाॅलस्टीन के क्राॅसब्रीड के प्रजनन से जन्मी गाय है।
इसके विशेषताएंः
- इन गायों के लिए हरा चारा आवश्यक नहीं है।
- यह गाय 25 डिग्री संटीग्रेट से ज्यादा तापक्रम सहन कर लेती है।
- यह गाय असानी से ग्याभन हो जाती है।
- आने वाले समय मे इस गाय का महत्व बढे़गा
जर्सी एवं हाॅलस्टीन की मिश्रित गाय
ज्यादातर गाय जर्सी तथा हाॅलस्टीन का क्राॅस होती हैं। जर्सी, हाॅलस्टीन की संकर गाय अधिकतर काले रंग की होती हैं तथा इनकी आंखे उभरी हुई होती हैं। जर्सी एवं हाॅलस्टीन गाय अधिक चिकनाई वाला दूध देती हैं तथा हाॅलस्टीन के मुकाबले कम बीमार पड़ती हैं, और मजबूत पैरों वाली होती हैं। इनका प्रजनन हाॅलस्टीन से आसान है। यह गाय हाॅलस्टीन से छोटी होती हैं।
फ्रिसवाल गाय
फ्रिसवाल गाय की उत्पति साहिवाल को हाॅलस्टीग से क्रोस करा कर 1992 में हुई। फ्रिसवाल गाय की उत्पति हुई। इनमें 15 ली0 दूध देने की क्षमता होती है। यहां गाय गर्मी कम मगती थी इनमे प्रेग्नेसी सम्बन्धी समस्या नही है। यह एक व्यात 4000 लीटर दूध देती है।
करन स्विस गाय
इस गाय की उत्पति साहिवाल तथा बाउन स्विस्ट से हुई यहां गाय 15 से 20 ली0 दूध प्रतिदिन देती है। यह गाय गर्मी को सहन करने की क्षमता रखती है इसमे प्रजनन सम्बधित समस्यायें कम है।
करन फ्रिश
इसकी भी उत्पति करनाल में हुई। ओर यहा हॅालस्टीग ओर थरपारकर का सवर्धन से पैदा हुई है इसकी उत्पति सन् 2000 के करीब हुई। यह संकर गायो मंे एक अच्छी गाये है तथा इस गाय मे प्रजनन की समस्या नही है व यह गर्मी को।
नोटः- भारतवर्ष में बा्रउन स्विट जर्सी रेडेन एव हालस्टिग गायो के सीमन से साईवाल राठी गिरी आदि को क्रोस करा कर ऐसी गाय की कल्पना की गई जिसमे ंकी दूध देने की क्षमता बढ जाये तथा उनके बैल खेती में काम कर सके परन्तु खेती यान्त्रिकीकरण से बैलो का कोई महत्व नही रहा। तथा प्रोजनीटेस्टेड साडो के अभाव में दूध उत्पादन में भी विशेष प्रगति नही हुई। परन्तु विदेशो से आयात प्रोजनीटेस्टेड हालस्टिग तथा जर्सी के वीर्य से उत्पन्न गायो का प्रदर्शन सर्व उतम रहा। अपनी गायो को बार बार विदेशी साडो से वीर्य करने पर हमने भी शुद्व नस्ल की जर्सी तथा हालस्टिग उत्पन्न कर ली है। यह गाय विदेश में उत्पन्न जर्सी हालस्टिग से मुकाबला करने में सक्षम है। आज कल 40 से 50 ली0 दुग्ध प्रति दिन पैदा करने वाली गाये निरन्तर बढती जा रही है। इसमें अब बछिया पैदा होने वाली ए2 वीर्य का प्रयोग हो रहा है। अब शंकर गायो का प्रचलन समाप्त हो रहा है।
ब्राजीलियन गिरी गाय
ब्राजील की गाय अत्यधिक चर्चा में है। इसका मुख्य कारण यह है कि ब्राजील की गिरी गाय 60 से 100 लीटर दूध प्रतिदिन देती है। तथा इन गायो को गर्मी का भी कोई असर नही होता। इसलिए इनको पंखो तथा फोगर की आवश्कता नही होती। इन गायो में प्रजनन की भी कोई समस्या नही है एवं सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इन गायो पर किलनी नही लगती है। इस वजह से इन पर कीटनाशक दवाइयांे का प्रयोग नही होता है। कीटनाशक दवाइयां कैंसर करती है एवं यह वार्तावरण को प्रदूषित करती है जिनका प्रभाव हानिकारक होता है। हालिस्टीन ओर जर्सी गाये रखने से ऊपर दी गई समस्या पैदा होती है। गिरी गाय सौ वर्ष पूर्ण भारत से ब्राजील ले जायी हुई थी वहां पर कालान्तर में प्रोजनी टेस्टेड साडो के बीज का उपयोग कर यह अच्छी गिरी गायांे की उत्पत्ति हुई है। भारत में 2018 में प्रोजनी टेस्टेड गिरी गायो का ऐसा सीमन प्राप्त किया जिसमे केवल बछियां ही पैदा होती है। लेकिन यह सीमन काफी मंहगा है इसलिए सभी जगह उपलब नहीं हो पाता है। इसको केवल ए.बी.एस. कम्पनी ही बेचती है। जिससे भविष्य में उŸाम गिरी गायो की पैदाईश की अपेक्षा की जा सकती है। हमारे देश मे गायो की प्रगति सलेक्शन द्वारा चिन्हित किये गये सांडो से होती है जिससे उनकी उपादक क्षमता 20 या 30 लीटर दूध पैदा करने की है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के लिए विश्व स्तर पर गिरी गाये अधिक परचिलित होगी। भारत के प्रत्येक राज्य में ब्राजीलियन गिरी गाय का केवल बछिया पैदा करने वाला बीज उपलब्ध है। परन्तु अब भ्रूण प्रत्यारोपण की तकनीकी से अच्छे सांड पैदा किये जा रहे है।