हाल में व्याही हुई भैंस का दूध निकालने का प्रभाव उसके दूध उत्पादक पर पड़ता है। 2 से 4 हफ्ते तक यदि अगर ठीक से दोहान न किया तो भैंस कम दूध देती है। इसलिए तेजी से दूध निकालने वाले ग्वाले या ग्वालिन की आवश्यकता होती है।
इसलिए यदि अगर आप के पास 100 लीटर दूध होता है तो मशीन जरूर लगवाये। व्याही हुई भैंस के पोषण का विशेष ध्यान रखें। भैंस सौ दिन तक दूध बढ़ाती है और फिर दो सौ दिन तक लगातार घटाती है।
दूध देने की अवधि
बियाने के बाद भैंस के दूध देने की अवस्था को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। पहली अवस्था 14 दिन से 100 दिन, दूसरी अवस्था 100 दिन से 200 दिन तथा तीसरी अवस्था 200 दिन से 305 दिन। यानी भैंस बियाने के 45 से 50 हफ्ते तक ही दूध देती है।
भैंस का दूध पहले 100 दिन में बढ़ता चला जाता है। फिर अगले 200 दिन तक धीरे- धीरे घटता जाता है। इसी तरह भैंस का वजन भी 100 दिन तक घटता है, फिर धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हो जाता है। दरअसल भैंस पहले कम चारा खाती है, फिर धीरे- धीरे उसका चारा बढ़ जाता है। अगले 200 दिन यह फिर घटता है। इस दौरान भैंस मोटी हो जाती है।
यह मोटापा उसके गाभिन होने की वजह से भी दिखायी देता है। भैंस का दुग्ध उत्पादन वजन तथा चारा खाने का प्रतिशत 300 दिन में यानि कि 55 हफ्ते तक चित्र में दर्शाया गया है। यह बताना भी आवश्यक है कि जो पशु बियाने के बाद गाभिन नहीं होते वो 22 माह तक यानी डेढ़-दो साल तक लगातार दूध देते रहते हैं। यदि आपकी भैंस लगातार 2 वर्ष तक 15 लीटर दूध प्रतिदिन देती है, तो आपको कोई हानि नहीं है।
अच्छी भैंस के साथ अच्छा दुहने वाला भी जरूरी
भैंस बेशक दूध की ‘ए.टी.एम’ यानि आटोमेटिक मशीन की तरह है। मगर ध्यान रहे अगर इसे दुहने वाला अनाड़ी है तो ये जादुई मशीन बेकार भी हो सकती है। अगर ढंग से दूध नहीं दुह पाये तो वह धीरे -धीरे दूध देना ही बंद कर देगी। हम अज्ञानता में इसके लिए अच्छी- खासी भैंस पर दोष मढ़ने लगते हैं। जबकि भैंस को बिगाड़ने के लिए हम ही दोषी होते हैं।
इसलिए इस पर हम विस्तार से चर्चा करें, यह जरूरी है। इससे पूर्व भैंस के शरीर से दूध के उतरने की प्रक्रिया को जानना भी जरूरी है। यह तो हम जानते ही हैं कि आम तौर पर जब बछड़ा या बछड़ी भैंस के पास छोड़ा जाता है तो स्वयं भैंस के थनों में दूध उतर आता है। ठीक ऐसा ही ‘मिल्किंग’ मशीन या फिर दूध के बर्तनों की आवाज सुनकर भी होता है।
यह सब कुछ एक स्वतः प्रक्रिया है। भैंस इसकी अभ्यस्त हो जाती है। इस सारी प्रक्रिया के पीछे वैज्ञानिक तथ्य यह है कि अपना बच्चा देखकर या मशीन व बर्तनों की आवाज से भैंस का मस्तिष्क रोज की अपनी आदत के अनुसार हरकत में आ जाता है। वह शरीर की प्रमुख अंतः स्रावी ग्रंथि ‘पिट्यूट्री’ को दूध के स्राव के लिए जिम्मेदार हारमोन ‘आक्सीटोसिन’ को उत्प्रेरित करता है। यह खून में उतर कर थनों में स्थित दूध की नलियों के गुच्छों के ऊपर स्थित थैली को संकुचित करती है इससे थनों में दूध उतर आता है।
इस तरह दूध थनों में इस ‘बाॅस्किट सैल’ के संकुचन से ही उतरता है। यह संकुचन ‘आॅक्सीटोसिन’ हार्मोन के असर से होता है। थन को चाहे आप जितना भी खीचें, अगर वहाॅं ‘आॅक्सीटोसिन’ की उपस्थिति नहीं है तो दूध थन से बाहर आ ही नहीं सकता। ‘आॅक्सीटोसिन’ का यह असर 10-15 या अधिकतम 20 मिनट तक ही रहता है। इसलिए यदि इतने समय में दूध नहीं निकाला तो फिर दूध नहीं उतरेगा।
‘आॅक्सीटोसिन’ फिर दुबारा 20 मिनट बाद ही अपना असर दिखाता है। जो लोग 10-15 मिनट में दूध नहीं निकाल पाते, वे अकसर यह शिकायत करते हैं कि भैंस दूध चढ़ा ले रही है। कभी-कभी तो वह ‘आॅक्सीटोसिन’ के इंजैक्शन से ही दूध उतारने की आदी हो जाती है।
आजकल सभी संकर भैंस अमूमन इसी प्रकार की होती हैं। डेयरी व्यवसाय में यह आवश्यक है कि दूध निकालने वाला काफी तीव्रता से दूध को निकाले अन्यथा कितने भी अच्छे रख-रखाव या खान-पान की व्यवस्था आप करें, भैंस खराब हो सकती हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि दूध निकालने में ‘निपुण’ आदमी ही दूध निकाले। आप विकल्प के तौर पर दूध निकालने की मशीन का प्रयोग भी कर सकते हैं।
‘आॅक्सीटोसिन’ हार्माेन 10 अमाइनो ऐसिड का छोटा सा प्रोटीन है, जो कि कुछ सेकण्ड की अवधि में ही शरीर में बनकर नष्ट हो जाता है। यह हार्मोन मनुष्य या भैंसों में किसी प्रकार के रोमांच होने से भी प्रभावित होकर नष्ट हो जाता है। हमारी जानकारी में शरीर पर इसके दुष्प्रभाव का या इससे कैंसर जैसे रोग हो जाने का कोई प्रमाण नहीं है। यदि अगर किसी को इस बारे में और सूचना प्राप्त करनी है तो वह यहां दिये जा रहे ईमेल: dcwathes@rvc.ac.uk का प्रयोग भी कर सकते है।
ब्याने वाली भैंस की देखभाल
ब्यांने वाली भैंस को ठण्ड से बचाना चाहिए। थौडा-थौडा चारा और दाना देते रहना चाहिए। तथा चैकर की मात्रा अधिक देना चाहिए। पानी तथा चारा उसके पास हमेंशा रहना चाहिए। इसे दूसरे पशुओं से दूर बांधना चाहिए। जिस कमरे में भैंस होती है उसमें रोशनी कम होनी चाहिए। थन तथा बच्चेदानी की बिमारी से सतर्क रहना चहिए। पशु में ग्लूकोज तथा कैल्शियम की कमी के लिए चीनी और गुड़ देना चहिए। कैल्शियम के लिए मिनरल मिक्चर देना चाहिए।
ब्यांने से पहले भैंस का दूध कैसे रोंके
भैंस से अधिक दूध लेनें के लिए यह आवश्यक है कि ब्यांने से पहले 60 दिन (2 माह) उससे दूध ना निकालें। ऐसा करने से ब्यांने पर पशु प्रचूर मात्रा में दूध देता है क्योंकि ऐसा करने से पशु का हाजमा दुरूस्त हो जाता है। जो कि दूध देते हुए अधिक दाना देने के कारण कमजोर हो जाता है। 2 माह तक दूध न निकालनें से खुरों की हड्डियां भी मजबूत हो जाती है।
यदि अगर ब्यातें वक्त तक दूध निकाला जाता है तो वह पशु अपनी क्षमता का 25 प्रतिशत कम दूध देता है। दूध रोकने के लिए 1 सप्ताह में धीरे- धीरे दाना कम करके एकदम दूध निकालना छोड़ देना चाहिए। तथा इसके चारों थनों में एक-एक ट्यूब Cepravin MSD कम्पनी का चढ़ा देना चाहिए। लेकिन अगर पशु को मैस्टाइटिस हो जाये तो उसका इलाज करना चहिए।
60 दिन के दूध न निकालने के समय में पहले 14 दिन में पुरानी सैल सिकुडकर खत्म हो माती हैं तथा अगले 32 दिन तक नई सैल बनकर पूरी हो जाती है। तथा आखिर के 14वें दिन में सैल खीस बनाना शुरु कर देती हैं। इस प्रकार 14+32=60 दिन पूरे हो जाते है। फिर बच्चा देने के बाद अधिक दूध देने लगता है।
Cepravin MSD ट्यूब पूरे 60 दिन तक अपना असर दिखाती है और थन को खराब होने से बचाकर एक स्वस्थ थन का निर्माण स्वस्थ्य भैंस में करता है। जिससे कि हमें अधिक दूध बेचकर अधिक लाभ प्राप्त होता है।
एक अच्छी भैंस एक ब्यांत में 3000 से 4000 लीटर दूध देती हैं जिसकी कीमत 40 रु. प्रति किलों के हिसाब से कम से कम 1.2 से 1.6 लाख हो सकती है। इस प्रकार भैंस को 2 माह तक सूखा रखकर और Cepravin MSD ट्यूब का प्रयोग करके हम भैस से अधिक से अधिक लाभ ले सकतें है।