देशी गाय, हाॅलस्टीन एवं भैंस का प्रजनन भिन्न है। देशी गाय अप्रैल से जून तक गर्भित होती है जबकि हाॅलस्टीन गाय कभी भी गर्भित हो सकती है। भैस सितम्बर से जनवरी तक की अवधि में ही गर्भित होती है।
गाय गर्मियों में जब दिन बडा होता है, तभी गर्भित होती हैं जबकि भैंस जाडों के छोटे दिनों में ही गर्भित होती है। भैंस 10 माह और 10 दिन में व्यांति है। जबकि गाय 9 माह 10 दिन में व्यांति है। अर्थात यह है कि गाय व्यांने के बाद 3 माह में गर्भित हो जाती है। और 12 माह में व्याह जाती है। भैंस यदि अक्टूबर में व्यांति हैं तो वह अगला व्यांत नवम्बर से दिसम्बर में करेगी। तथा उससे अगला व्यांत जनवरी से पफरवरी में करेगी। उसके बाद गर्मियों में वह गर्भित न होने के कारण वह 2 वर्ष बाद व्यांती है। ऐसी भैंसों को दो वर्षी कहते है।
भैंसे का बीज भी गर्मी में संवर्धन लायक नहीं होता है। जाडे़ में बीज की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है। और यदि जाडे़ में संरहित बीज कृत्रिम गर्भाधान द्वारा भैस को कृत्रिम रुप से दिन की लम्बाई को छोटा करके उपयोग किया जाये तो सफलता मिल सकती है। भैस की गर्मी जाड़े में 201 से 22 दिन में आती है। और कोई-कोई भैंस 6 से 7 दिन तक गर्म होती है। भैंस का बार-बार पेसाब कराना तथा थनों में दूध उतारना उसकी गर्मी की पहचान होती है। इसकी गर्मी, गाय की गर्मी से भिन्न होती है।
वश में अब प्रजनन
आजकल हम दवाओं का प्रयोग करके ब्यायी हुई या उन गायों को, जो कि खाली हैं, एक साथ ‘गर्मी’ में लाकर प्रजनन करा सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि आपको पांच गायों को ‘हीट’ अथवा गर्मी में लाना है, तो आप उन पांचों गायों को एक साथ एक बार पांच एम.एल. ल्यूटालाइज का इंजैक्शन पुट्ठे के माॅंस में अपने पशु चिकित्सक से लगवाएं। इस इंजैक्शन के लगाने के 48 या 72 घंटे के बाद जो-जो गायें ‘हीट’ में आती हैं, उनका गर्भाधान कराएं। जो गाय ‘गर्म’ नहीं होती, उसे फिर से पांच एम.एल. ल्यूटालाइज का इंजैक्शन लगाएं। इससे वह गाय भी 48 से 72 घंटे के बीच में गर्म हो जायेगी।
इस तरह करीब 10-12 दिन में आपकी पांचों गायें गर्भित हो जायेंगी। इनकी दो या तीन महीनें पर गाभिन होने की जांच भी कराई जा सकती है। यह सभी गायें एक साथ ‘गाभिन’ होने पर एक साथ ही ब्याती भी हैं। इस प्रकार से पांच पशुओं को गाभिन अथवा गर्भधारण कराने से बार-बार पशु चिकित्सक को बुलाने के झंझट से भी छुटकारा मिल जायेगा।
इस तरह सभी गायों के एक साथ गर्भित होने पर समय और श्रम दोनों की बचत होगी। इसका फायदा डेरी उद्योग को मिलेगा। इंजैक्शन कभी भी किसी गाभिन पशु को न लगायें अन्यथा गर्भपात हो जायेगा। इस इंजैक्शन को हाथ से न छुएं तथा इस्तेमाल हुई सिरिंज को नष्ट कर दें। इसके सम्पर्क में आने से आप भी बीमार पड़ सकते हैं।
पशु प्रजनन अब आदमी के अपने हाथ में है। वह जब चाहे, पशुओं को प्रजनन के लिए तैयार कर सकता है।
हम जानते हैं कि प्राकृतिक तौर पर भैंस एक निश्चित समयावधि में ही प्रजनन करती है। पर अब ऐसी तकनीकें विकसित कर ली गई हैं कि भैंस को हम अपने मन मुताबिक ‘गर्भित’ कर सकते हैं। यह सारा खेल प्रजनन को प्रोत्साहित करने वाली दवाओं यानी हारमोन का है। जी हां, प्रजनन को प्रभावित करने वाली इन अचूक दवाओं की मदद से हम दो-तीन दिन के भीतर ही भैंस को प्रजनन के लिए तैयार कर सकते हैं।
इसके लिए पोस्टाग्लैडीन का प्रयोग किया जाता है। तथा अण्डादानी से अण्डा निकालने के लिए रिसैप्टल का प्रयोग करतें है। इसमें आप अपने पशु चिकित्सक की मदद लें। इन नई विधियों का प्रयोग करके हरियाणा, पंजाब में प्राकृतिक संवर्धन के स्थान पर कृत्रिम गर्भाधान से अति उत्तम प्रकार की भैंसे पैदा करके पशुपालन से अपनी आय बढा रहें है।
कृत्रिम गर्भाधान
यदि आपने दो-तीन भैंस रखी हैं तो पशु चिकित्सक या एल ई ओ- लाइपफ स्टाॅक प्रसार अधिकारी से गर्भाधान करायें। पशु 20 दिन के अन्तराल में गर्मी में आते हैं। परन्तु ब्याने के पहली बार गरम होने पर या कटिया के पहली बार गरम होने पर उसे गर्भित नहीं करना चाहिए। यह भी समझ लेना चाहिए कि जब कोई पशु गरम होना प्रारम्भ होता है, तो वह चारा छोड़ देता है। जमीन तथा दूसरे पशुओं को सूंघता है।
पशु खुला हो तो वो दूसरे जानवरों पर कूदता है तथा चढ़ने की कोशिश करता है। साथ ही उसकी जननांग से सपफेद कांच की तरह का पारदर्शी स्राव निकलता है। इसे बोल चाल की भाषा में ‘तोडा’ कहते हैं। यह पशु इस दौरान कभी कभी बोलते (रंभाते) हैं। दूध देना भी कम कर देते हैं और कुछ पशु तो दूध भी बन्द कर देते हैं। ऐसे लक्षण दिखाई देने के 12 घंटे बाद पशु को गर्भित करवा देना चाहिए।
गर्भाधान की जांच
यह जान लेना भी जरूरी है कि आदमी व गायों में गर्भाधान की जांच का तरीका भिन्न है। मनुष्य, बन्दर व बन्दर जाति के प्राणियों में माहवारी रूकने से गर्भधारण की पुष्टि हो जाती है। परन्तु भैस में ऐसा कुछ भी नहीं होता। गर्भाधान के उपरान्त यदि 20 दिन बाद, वह ‘हीट’ में न आये, तो इससे यह संकेत मिलते हैं कि इस पशु ने गर्भधारण कर लिया है। परन्तु विरोधाभास यह है कि 30 प्रतिशत पशु गर्भधारण के बाद भी ‘हीट’ में आ जाते हैं।
कुशल पशु चिकित्सक गर्भाधान के डे़ढ महीने बाद गर्भधारण की पुष्टि कर देते हैं। परन्तु ज्यादातर पशु चिकित्सक गर्भधारण की पुष्टि तीन महीने या तीन महीने के उपरान्त ही कर पाते हैं। यह बताना उचित होगा कि गर्भित पशु को किसी प्रकार का टीका, कीड़े मारने की दवा या बाह्य परजीवी मारने की दवा नहीं खिलानी चाहिए। तीन माह की अवधि के बाद भ्रूण की नाजुक अवस्था पार हो जाती है और वह किसी प्रकार की बीमारी या दवाइयों से ज्यादा प्रभावित नहीं होता। अपने पशु की पशु चिकित्सक से जांच करा कर गर्भधारण करने की तारीख से 270 दिन गिनकर अनुमान लगा लेना चाहिए कि वह कब ब्यायेगी। ब्याने के 60 दिन पहले दूध छोड़ना पड़ता है।
डेयरी उद्योग काफी मशक्कत भरा काम है। इसमें जितनी मेहनत और साज-सम्हाल आप करेंगे, उतना ही मेहनताना यानी लाभ भी आपको मिलेगा। इस काम में फजीहत भी कम नहीं है। कभी-कभी पशुओं को बार-बार गर्भाधान कराने और उनके गर्भधारण न करने से खासी निराशा भी होती है। साथ में नुकसान तो होता ही है। पर्याप्त जानकारी न होने से भी ये सारी दिक्कतें आती हैं।
इसलिए इस सबसे बचने के लिए आप ‘कृत्रिम गर्भाधान’ के तुरन्त बाद ही ‘रेस्पटल’ यानी ‘जी.एन.आर.एच’- गोनेडोट्राॅफिन हारमोन का इंजैक्शन लगवायें। दसवें दिन बाद यही इंजैक्शन पिफर लगवायें। इसके बाद भी अगर आपका पशु गाभिन नहीं होता और ‘हीट’ में भी नहीं आता तो पशु चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
एक बात और ध्यान रखें। अगर आपके पशु ने बच्चा जना है तो उसके ब्याने यानी बच्चा देने के 10वें दिन ‘ल्यूटालाइज’ का इंजैक्शन जरूर लगवा दें। इससे आपका यह पशु एक महीने बाद ही ‘हीट’ में आ जायेगा। लेकिन ध्यान रखें, पहली ‘हीट’ में ही उसे गर्भधारण न करायें। उसे दूसरी बार ‘हीट’ में आने दें। तभी गर्भित करायें। इस तरह पशु 60 दिन के भीतर गाभिन हो जाना चाहिए।