बीटा केसीन दूध में पायी जाने वाली कैल्शियम युक्त प्रोटीन है जो कि हड्डियों को मजबूत करने, प्रतिरक्षण प्रणाली को ठीक करने एवं जीवन क्रियाओं में सहायक होती है। प्रारम्भ से ही गाय की बीटा केसीन ए2 प्रकार की है, परन्तु अब ए1 प्रकार की बीटा केसीन यूरोपियन नस्ल की गायों में पायी जाने लगी है।
इसके विपरीत बकरी, भेड़, भैंस, ऊंट तथा मनुष्य के दूध में बीटा केसीन केवल ए2 प्रकार की होती है। पाचन क्रिया में ए1 बीटा केसीन से एक और प्रोटीन की उत्पत्ति होती है जिससे बीटा कैसोमौपिर्फन 7 होता है। यह एक प्रकार ओपाॅअड है, यह अपने बनने के लेवल के अनुसार अपने प्रभाव को दिखाता है। इसके प्रभाव में टाइप 1 डाइबीटीज, हृदय से संबंधित बीमारियां, मस्तिष्क से संबंधित बीमारियां, व्यवहार में परिवर्तन, बच्चों का विकास, बच्चों में आकस्मिक मृत्यु तथा दूध से एलर्जी संबंधित बीमारियां हैं। इन सब बातों की सत्यता गुणात्मक रूप से तथा पशुओं में प्रयोग करके सिद्ध हो चुकी हैं। चूहों में प्रयोग करके यह देखा गया है कि ए1 बीटा केसीन आंतों में खाने के पाचन को बाधित करती है। जिससे एक एन्जाइम डी.पी.पी. 4 अधिक मात्रा में निकलता है। जो बड़ी आंत को बाधित करता है। ये सारी बातें जो वीटा ए1 केसीन में होती हैं परन्तु ए2 बीटा केसीन में नहीं होती हैं।
इन सब बातों से बीटा ए1 केसीन पर अनुसंधान करने की बात को बल मिलता है, इसलिए केवल उन्हीं गायों का प्रजनन कराना चाहिए जो कि ए2 बीटा केसीन दूध में पैदा करती हैं, इसको बदलने में 4 से 12 साल तक का समय लग सकता है परन्तु प्रजनन की नई तकनीक के द्वारा कम समय में भी इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। भारतवर्ष में हम लोग ज्यादातर भैंस का दूध पीते हैं तथा देशी गाय का दूध पीते हैं। इसलिए इस दूध में बीटा केसीन ए1 की कोई सम्भावना नहीं है। यूरोप की सभी नस्लों में ए1 बीटा केसीन नहीं पाया जाता है। हाॅलस्टीन में सबसे ज्यादा तथा जर्सी में कम है। जिसमें 25-50 प्रतिशत देशी गायों का समावेश है। परन्तु हमें ए1 और ए2 का पता लगाकर ऐसे ही पशुओं का प्रजनन करना चाहिए। जिसमें ए2 बीटा केसीन हैं हमारी कुल गायों में 20 प्रतिशत संकर गायें हैं। केसीन घी बनाने में निकल जाती है। इसलिए घी बनाने में केसीन के प्रभाव की समस्या कम रहती है।