कृत्रिम गर्भाधान की क्रिया में जीवित शुक्राणु को सांड से इकट्टा करके उपकरण के द्वारा गाय की बच्चेदानी में गाय के हीट में आने पर रखा जाता है। इसको चित्रों द्वारा दिखाया गया है।
शुक्राणुओ को प्रवेश द्वार के बीच में छोडा जाता है। क्योंकि सरर्विस में टुटे फूटे शुक्राणुओ को छांट लिया जाता है।
शुक्राणुओ को सरर्विस के पार डालने से खराब शुक्राणु की जो छटाई सरर्विस में होती है वो नही हो पायेगी। इसलिए चित्र में दिखाये हुए स्थान पर शुक्राणुओ का छोडना गलत है बच्चेदानी में छोडी जाने वाली दवाई को बच्चेदानी मे डाले।
स्पर्म का आकार 10 माइक्रोन का होता है तथा गाय का अंडा 200 माइक्रोन का होता है। 15 मिलियन स्पर्म में से जो एआई द्वारा गाय में डाले जाते है। इसमे से केवल एक ही गाय के अण्डे में घुस पाता है इसके स्पर्म को अण्डे से मिलने को फर्टीलाइजेशन कहते है।
बच्चेदानी में शुक्राणु की आयु 72 घण्टे होती है। तथा मादा के अण्डे की आयु 24 घण्टे होती है। परन्तु अण्डे को बच्चेदानी से बाहर निकलकर परख नली में फर्टीलाइजेशन कर सकते है। इस क्रिया को परखनली का बच्चा कहते है।
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भ्रूण प्रत्यरोपण
क्लोनड एनिमल्स
गाय को हार्मोन का इजेक्शन देकर 30 या 40 अण्डे निकाले जा सकते है तथा बच्चेदानी में स्पर्म छोडकर उनसे भ्रूण बनाये जा सकते है। तथा इन सभी भ्रूणो को बाहर निकाल कर एक भ्रूण एक गाय में रखकर बच्चे पैदा किये जा सकते है। इस प्रकार एक अच्छी गाय ओर एक अच्छे सांड की कई अच्छी फोटो बनाई जा रही है। एक गाय अपने जीवन काल में 3 या 4 बछिया देती है परन्तु इस विधि द्वारा एक गाय के 30-40 बच्चे 9 महीने में पैदा किये जा सकते है। इस क्रांतिकारी परिवर्तनकारी तकनीकी से प्रगति की गति कई गुना तेज हो गई। इस तकनीकी से गाय के भ्रूणो को लम्बी अवधि तक तरल नाइट्रोजन में रखकर गाय ओर सांड के मरने के बाद भी बच्चे उत्पन्न किये जा सकते है। यह विधि गायों मे सफल है। परन्तु भैसो मे भू्रण प्रत्यारोपण व्यवहारिक नही है। भारत वर्ष के हिसार के भैस रिर्सच सेंटर में भैस के शरीर से एक सेल लेकर पूर्ण भैंस को बना लिया है जिसको क्लोन बफैलो कहते है।