यह बिमारी बुड्ढे जानवरों में अकसर पनप जाती हैं। इस रोग को होने में चार हफ्ते से छह हफ्ते लग जाते हैं। इसके लक्षण है बुखार आना और आँख व जीभ का पीला हो जाना। इस रोग में पशु जुगाली करना बंद कर देता है।
उसका गोबर सख्त हो जाता है। दूध उत्पादन में कमी हो जाती है। इस रोग का, खून की जाँच से पता चल जाता है। यह एन्टीबायोटिक और कौर्टिसोन से ठीक हो जाता है। इस बीमारी में बीमार पशुओं को इधर-उधर न ले जाएं। उन्हें साफ पानी पिलायें, चीनी को सिरके में मिलाकर पिलाये। इस रोग के साथ-साथ कभी-कभी बबेसिया भी हो जाता है इस रोग का निदान लौंएक्टिंग (एन.ए.) टैरामाइसीन से संभव है। बबेसिया के लिए रेडि टू यूज बबेसिया का इंजैक्शन आता है, इसे अपने पशु चिकित्सक से ही लगवायें।
गौ-मूत्र में रक्त कभी- कभी गायों में उनके मूत्र के साथ खून आने लगता है। इससे गौ-मूत्र का रंग या तो पूरी तरह खून जैसा लाल होता है, या बिना दूध की चाय की तरह गहरे गुलाबी रंग का होता है। यह रोग मुख्य रूप से तीन कारणों से होता है-