डेरी पशुओं में गर्भपात की समस्या प्रायः गाय छठवें महीने में या तीसरे महीने में गर्भपात करती हैं। छठे महीने का गर्भपात ‘बूर्सेलोसिस’ की वजह से होता है। यह संक्रामक रोग है। इसलिए रोगी गाय को अन्य गायों से अलग रखना चाहिए। साथ ही उसके ‘जेर’ और उसके अविकिसित बच्चें को नंगे हाथों से नहीं छूना चाहिए। क्योंकि यह रोग मनुष्य में भी फैल सकता है। इसलिए दस्ताने इस्तेमाल करें। जब गाय तीन माह में ही गर्भपात कर देती है। तो यह ‘विविरिआॅसिस’ रोग के कारण होता है। यह भी संक्रामक रोग है और तुरन्त दूसरी गायों को भी अपनी चपेट में ले लेता है। इसलिए इस रोग में भी संक्रमित पशु को अन्य पशुओं से तुरन्त अलग कर देना चाहिए। ध्यान रहें, गर्भपात वाली गायों को बिना इलाज करायें छह महीनों तक प्रजनन नहीं कराना चाहिए। गर्भपात के और भी कारण हो सकते हैं। जैसे आनुवंशिक अथवा जैनेटिक या फिर गर्मी के कारण। जब बाहर तापक्रम 40 डिग्री से 45 डिग्री सेंटीग्रेड पहुँच जाता है तो गाय गर्भपात कर देती है। रासायनिक खाद्यों जैसे अमोनियम नाइट्रेट इत्यादि के खा लेने से या फिर फफूंदी लगे दाना या खल खाने से भी यह रोग हो जाता है। फफूंदी लगी खल में ‘माइकोप्लाज्मा’ विष होता है, जो गर्भपात करा देता है। छोटी राई, जई और गेहू के छोटे दानों में ‘अरघट’ की बीमारी होने से भी गर्भपात हो जाता है। प्रजनन के तीन महीने तक कोई टीकाकरण या कीड़े की दवा नहीं देनी चाहिए। इससे भी गर्भपात होने की सम्भावना रहती है।