यह बीमारी पशुओं खासकर कुत्तो के काटने से आदमियों में फैलती है। कुत्तो के काटने के 9 दिन बाद से कई महीनों बाद तक यह रोग हो सकता है।
यह इस पर निर्भर करता है कि कुत्ता ने कहां काटा है। यदि मुंह पर काटा है, तो यह बीमारी जल्दी पफैलती है और अगर पैर में काटा हो तो यह देर से असर दिखाती है। इसका जीवाणु नसों के द्वारा दिमाग तक पहुंचता है और मुंह की लार से फैलता है। यदि संक्रमित पशु की लार मुंह, नाक व आंख में लग जाए तो भी यह बीमारी पफैल सकती है। रैबीज का जीवाणु दूध में भी आता है। इसलिए इसके दूध को भी प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। इस बीमारी के गाय, भैंसों में कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते। बस होता यह है कि बहुत सीधे-सादे पशु भी कभी-कभी बहुत खूंॅखार बर्ताव करने लगते हैं। वे पानी से घबराते हैं। यह रोग उन सभी स्तनधारी पशुओं को होता है, जो जंगल जाते हैं। वो किसी पागल जंगली जानवर के काटने से रोगग्रस्त हो जाते हैं। चमगादड़ तथा नेवला भी यदि इस रोग से ग्रस्त है, तो वह आपके पशु को काटकर यह बीमारी दे सकता है।